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________________ निसीहज्झयणं उद्देशक १ : सूत्र ७-१३ उच्छोलेज्ज वा पधोवेज्जा वा, उच्छोलेंतं वा पधोवेंतं वा सातिज्जति॥ प्रधावेद् वा, उत्क्षालयन्तं वा प्रधावन्तं वा स्वदते । है अथवा प्रधावन करता है और उत्क्षालन अथवा प्रधावन करने वाले का अनुमोदन करता है। ७. जे भिक्खू अंगादाणं णिच्छल्लेति, णिच्छल्लेंतं वा सातिज्जति॥ यो भिक्षुः अङ्गादानं 'निच्छल्लेति', ७. जो भिक्षु अंगादान का निश्छलन करता 'निच्छल्लेंतं' वा स्वदते। है-अग्रभाग की त्वचा को हटाता है अथवा निश्छलन करने वाले का अनुमोदन करता ८.जे भिक्खू अंगादाणं जिंघति, जिंघतं वा सातिज्जति॥ यो भिक्षुः अङ्गादानं जिघ्रति, जिघ्रन्तं वा ८. जो भिक्षु अंगादान को सूंघता है अथवा स्वदते। सूंघने वाले का अनुमोदन करता है। ९. जे भिक्खू अंगादाणं अण्णयरंसि यो भिक्षुः अङ्गादानम् अन्यतरस्मिन् अचित्तंसि सोयंसि अणुप्पवेसेत्ता अचित्ते स्रोतसि अनुप्रविश्य शुक्रपुद्गलान् सुक्कपोग्गले णिग्घाएति, णिग्घायंतं निर्घातयति, निर्घातयन्तं वा स्वदते। वा सातिज्जति॥ ९. जो भिक्षु अंगादान को किसी अचित्त स्रोत में प्रविष्ट कर शुक्र पुद्गलों को निकालता है अथवा निकालने वाले का अनुमोदन करता जिंघति-पदं १०. जे भिक्खू सचित्तपइट्ठियं गंधं जिंघति, जिंघंतं वा सातिज्जति॥ घ्राण-पदम् घ्राण-पद यो भिक्षुः सचित्तप्रतिष्ठितं गन्धं जिघ्रति, १०. जो भिक्षु सचित्त द्रव्य (अतिमुक्तक पुष्प जिघ्रन्तं वा स्वदते। आदि) की गन्ध को सूंघता है अथवा सूंघने वाले का अनुमोदन करता है।' अण्णउत्थिय-गारत्थिय-कारावण-पदं ११. जे भिक्खू पदमग्गं वा संकमं वा अवलंबणं वा अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा कारेति, कारेंतं वा सातिज्जति॥ अन्ययूथिक-अगारस्थित-कारण-पदम् यो भिक्षुः पदमार्ग वा संक्रमंवा अवलम्बनं वा अन्ययूथिकेन वा अगारस्थितेन वा कारयति, कारयन्तं वा स्वदते । अन्यतीर्थिक-अगारस्थित-कारण-पद ११. जो भिक्षु अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ से पदमार्ग, संक्रम अथवा अवलम्बन का निर्माण करवाता है अथवा करवाने वाले का अनुमोदन करता है। १२. जे भिक्खू दगवीणियं अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा कारेति, कारेंतं वा सातिज्जति॥ यो भिक्षुः दकवीणिकाम् अन्ययूथिकेन वा १२. जो भिक्षु अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ से अगारस्थितेन वा कारयति, कारयन्तं वा दकवीणिका का निर्माण करवाता है अथवा स्वदते। निर्माण करवाने वाले का अनुमोदन करता १३. जे भिक्खू सिक्कगं वा यो भिक्षुः शिक्यकं वा शिक्यकानन्तकं सिक्कगणंतगंवा अण्णउत्थिएण वा __ वा अन्ययूथिकेन वा अगारस्थितेन वा गारथिएण वा कारेति, कारेंतं वा कारयति, कारयन्तं वा स्वदते । सातिज्जति॥ १३. जो भिक्षु अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ से छींका अथवा छींके के ढक्कन का निर्माण करवाता है अथवा निर्माण करवाने वाले का अनुमोदन करता है।
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
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