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________________ निसीहज्झयणं ३९७ उद्देशक १७: सूत्र १४८-१५१ गोणजुद्धाणि वा महिसजुद्धाणि वा सूकरजुद्धाणि वा कण्णसोयपडियाए अभिसंधारेति, अभिसंधारेंतं वा सातिज्जति॥ महिषयुद्धानि वा शूकरयुद्धानि वा कर्णश्रोतःप्रतिज्ञया अभिसंधारयति, अभिसंधारयन्तं वा स्वदते। शूकरयुद्ध को कान से सुनने की प्रतिज्ञा से जाने का संकल्प करता है अथवा संकल्प करने वाले का अनुमोदन करता है। १४८. जे भिक्खू उज्जूहियाठाणाणि वा यो भिक्षुः ‘उज्जूहिया'स्थानानि वा १४८. जो भिक्षु उज्जूहिया स्थान, हययूथिका हयजूहियाठाणाणि वा गयजूहिया- हययूथिकास्थानानि वा गजयूथिका- स्थान अथवा गजयूथिका स्थान को कान ठाणाणि वा कण्णसोयपडियाए स्थानानि वा कर्णश्रोतःप्रतिज्ञया से सुनने की प्रतिज्ञा से जाने का संकल्प अभिसंधारेति, अभिसंधारेंतं वा अभिसंधारयति, अभिसंधारयन्तं वा करता है अथवा संकल्प करने वाले का सातिज्जति॥ स्वदते। अनुमोदन करता है। १४९. जे भिक्खू अभिसेयट्ठाणाणि वा यो भिक्षुः अभिषेकस्थानानि वा १४९. जो भिक्षु अभिषेक स्थान, आख्यायिका अक्खाइयट्ठाणाणि वा माणुम्मा- आख्यायिकास्थानानि वा स्थान, मानोन्मान स्थान अथवा आहत णियट्ठाणाणि वा महयाहय-णट्ट- मानोन्मानिकस्थानानि वा महदाहत- नाट्यों, गीतों तथा कुशल वादक द्वारा गीय - वादिय - तंती - तल-ताल- नृत्य-गीत-वादित्र-तन्त्री-तल-ताल- बजाए हुए वादित्र, तंत्र, तल, ताल और तुडिय-पडुप्पवाइयट्ठाणाणि वा त्रुटित-पटुप्रवादित-स्थानानि वा त्रुटित की महान् ध्वनि वाले स्थान को कान कण्णसोयपडियाए अभिसंधारेति, कर्णश्रोतःप्रतिज्ञया अभिसंधारयति, से सुनने की प्रतिज्ञा से जाने का संकल्प अभिसंधारेंतं वा सातिज्जति।। अभिसंधारयन्तं वा स्वदते। करता है अथवा संकल्प करने वाले का अनुमोदन करता है। १५०. जे भिक्खू डिंबाणि वा डमराणि वा खाराणि वा वेराणि वा महाजुद्धाणि वा महासंगामाणि वा कलहाणि वा बोलाणि वा कण्णसोयपडियाए अभिसंधारेति, अभिसंधारेंतं वा सातिज्जति॥ यो भिक्षुः डिम्बानि वा डमराणि वा क्षाराणि वा वैराणि वा महायुद्धानि वा महासंग्रामान् वा कलहान् वा बोलान् वा कर्णश्रोतःप्रतिज्ञया अभिसंधारयति, अभिसंधारयन्तं वा स्वदते । १५०. जो भिक्षु डिंब, डमर, खार, वैर, महायुद्ध, महासंग्राम, कलह अथवा कोलाहल को कान से सुनने की प्रतिज्ञा से जाने का संकल्प करता है अथवा संकल्प करने वाले का अनुमोदन करता है। १५१. जे भिक्खू विरूवरूवेसु महुस्सवेसु इत्थीणि वा पुरिसाणि वा थेराणि वा मज्झिमाणि वा डहराणि वा-अणलंकियाणि वा सुअलंकियाणि वा गायंताणि वा वायंताणि वाणच्चंताणि वा हसंताणि वा रमंताणि वा मोहंताणि वा विउलं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा परिभाएंताणि वा परिभुंजंताणिवा कण्णसोयपडियाए अभिसंधारेति, अभिसंधारेतं वासातिज्जति॥ यो भिक्षु विरूपरूपेषु महोत्सवेषु स्त्रीः वा १५१. जो भिक्षु विविध प्रकार के महोत्सवों में, पुरुषान् वा स्थविरान् वा मध्यमान् वा जहां अलंकाररहित अथवा सुअलंकृत, डहरान् वा-अनलंकृतान् वा स्वलंकृतान् स्थविर, मध्यमवय वाले अथवा छोटीवय वा गायतः वा वादयतः वा नृत्यतः वा वाले, स्त्री अथवा पुरुष, गाते हुए, बजाते हसतः वा रममाणान् वा मोहयतः वा हुए, नाचते हुए, हंसते हुए, क्रीड़ा करते विपुलम् अशनं वा पानं वा खाद्यं वा हुए, मोहित करते हुए, विपुल अशन, पान, स्वाद्यं वा परिभाजयतः वा परिभुजानान् खाद्य अथवा स्वाद्य को बांट रहे हों अथवा वा कर्णश्रोतःप्रतिज्ञया अभिसंधारयति, खा रहे हों, उन्हें कान से सुनने की प्रतिज्ञा अभिसंधारयन्तं वा स्वदते। से जाने का संकल्प करता है अथवा संकल्प करने वाले का अनुमोदन करता है।
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
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