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________________ ३२९ निसीहज्झयणं जायणा-णिमंतणा-वत्थ-पदं याचना-निमन्त्रणा-वस्त्र-पदम् ९८. जे भिक्खू जायणावत्थं वा यो भिक्षुः याचनावस्त्रं वा निमन्त्रणावस्त्रं णिमंतणावत्थं वा अजाणिय वा अज्ञात्वा अपृष्ट्वा अगवेषयित्वा अपुच्छिय अगवेसिय पडिग्गाहेति, प्रतिगृह्णाति, प्रतिगृह्णन्तं वा स्वदते । तच्च पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति वस्त्रं चतुर्णाम् अन्यतमं स्यात्, से य वत्थे चउण्हं अण्णयरे सिया, तं तद्यथा-नित्यनिवसनिकं, माज्जनिकं, जहा-णिच्चणियंसणिए मज्जणिए क्षणौत्सविकं, राजद्वारिकम्। छणूसविए रायदुवारिए। उद्देशक १५ : सूत्र ९८-१०३ याचना-निमंत्रणा-वस्त्र-पद ९८. जो भिक्षु याचनावस्त्र अथवा निमंत्रण वस्त्र को जाने बिना, पूछे बिना, गवेषणा किए बिना ग्रहण करता है अथवा ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है। वह वस्त्र चारों में से एक (अन्यतर) हो सकता है जैसे-नित्य-निवसनीय, मज्जनिक, क्षणौत्सविक और राजद्वारिक ।' पाय-परिकम्म-पदं पादपरिकर्म-पदम् पादपरिकर्म-पद ९९.जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो यो भिक्षुः विभूषाप्रतिज्ञया आत्मनः पादौ ९९. जो भिक्षु विभूषा के संकल्प से अपने पैरों पाए आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा, आमृज्याद् वा प्रमृज्याद् वा, आमार्जन्तं का आमार्जन करता है अथवा प्रमार्जन आमज्जंतं वा पमज्जंतं वा वा प्रमार्जन्तं वा स्वदते। करता है और आमार्जन अथवा प्रमार्जन सातिज्जति॥ करने वाले का अनुमोदन करता है। १००. जे भिक्खू विभूसावडियाए यो भिक्षुः विभूषाप्रतिज्ञया आत्मनः पादौ १००. जो भिक्षु विभूषा के संकल्प से अपने अप्पणो पाए संवाहेज्ज वा ___ संवाहयेद् वा परिमर्दयेद् वा, संवाहयन्तं पैरों का संबाधन करता है अथवा परिमर्दन पलिमद्देज्ज वा, संवाहेंतं वा वा परिमर्दयन्तं वा स्वदते। करता है और संबाधन अथवा परिमर्दन पलिमहेंतं वा सातिज्जति॥ करने वाले का अनुमोदन करता है। १०१. जे भिक्खू विभूसावडियाए यो भिक्षुः विभूषाप्रतिज्ञया आत्मनः पादौ १०१. जो भिक्षु विभूषा के संकल्प से अपने अप्पणो पाए तेल्लेण वा घएण वा तैलेन वा घृतेन वा वसया वा नवनीतेन पैरों का तेल, घृत, वसा अथवा मक्खन से वसाए वा णवणीएण वा अब्भंगेज्ज वा अभ्यज्याद् वा म्रक्षेद् वा, अभ्यंगन करता है अथवा म्रक्षण करता है वा मक्खेज्ज वा, अब्भंगेंतं वा अभ्यञ्जन्तं वा म्रक्षन्तं वा स्वदते । और अभ्यंगन अथवा म्रक्षण करने वाले का मक्खेंतं वा सातिज्जति॥ अनुमोदन करता है। १०२. जे भिक्खू विभूसावडियाए यो भिक्षुः विभूषाप्रतिज्ञया आत्मनः पादौ १०२. जो भिक्षु विभूषा के संकल्प से अपने अप्पणो पाए लोद्धेण वा कक्केण वा लोध्रेण वा कल्केन वा चूर्णेन वा वर्णेन वा । पैरों पर लोध, कल्क, चूर्ण अथवा वर्ण का चुण्णेण वा वण्णेण वा उल्लोलेज्ज उल्लोलयेद् वा उद्वर्तेत वा, लेप करता है अथवा उद्वर्तन करता है और वा उव्वडेज्ज वा, उल्लोलेंतं वा उल्लोलयन्तं वा उद्वर्तमानं वा स्वदते। लेप अथवा उद्वर्तन करने वाले का उव्वटेंतं वा सातिज्जति॥ अनुमोदन करता है। १०३. जे भिक्खू विभूसावडियाए यो भिक्षुः विभूषाप्रतिज्ञया आत्मनः पादौ १०३. जो भिक्षु विभूषा के संकल्प से अपने अप्पणो पाए सीओदग-वियडेण वा शीतोदकविकृतेन वा उष्णोदकविकृतेन पैरों का प्रासुक शीतल जल अथवा प्रासुक उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा उत्क्षालयेद् वा प्रधावेद् वा, उष्ण जल से उत्क्षालन करवाता है अथवा वा पधोवेज्ज वा, उच्छोलेंतं वा उत्क्षालयन्तं वा प्रधावन्तं वा स्वदते । प्रधावन करता है और उत्क्षालन अथवा पधोवेंतं वा सातिज्जति॥ प्रधावन करने वाले का अनुमोदन करता है।
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
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