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________________ उद्देशक १४ : सूत्र ३१-३७ ३१. जे भिक्खू पडिग्गहाओ पुढवीकायं णीहरति, णीहरावेति, णीहरियं आहट्ट देज्जमाणं पडिग्गाहेति, पडिग्गार्हतं वा सातिज्जति ।। ३२. जे भिक्खू पडिग्गहाओ आउकायं णीहरति, णीहरावेति णीहरियं आहट्ट देज्जमाणं पडिग्गाहेति, पडिग्गार्हतं वा सातिज्जति ।। ३३. जे भिक्खू पडिग्गहाओ तेडक्कायं णीहरति, णीहरावेति, णीहरियं आहट्ट देज्जमाणं पडिग्गाहेति, पडिग्गार्हतं वा सातिज्जति ।। ३४. जे भिक्खू पडिग्गहाओ कंदाणि वा मूलाणि वा पत्ताणि वा पुप्फाणि वा फलाणि वा बीजाणि वा णीहरति, णीहरावेति, णीहरियं आहट्ट देज्जमाणं पडिग्गाहेति, पडिग्गाहें वा सातिज्जति ।। ३५. जे भिक्खू पडिग्गहाओ ओसहिबीयाइं णीहरति, णीहरावेति, णीहरियं आहट्ट देज्जमाणं पडिग्गाहेति, पौडेग्गार्हतं वा सातिज्जति ॥ ३६. जे भिक्खू पडिग्गहाओ तसपाणजातिं णीहरति, णीहरावेति, णीहरिय आहट्ट देज्जमणं पडिग्गाहेति, पडग्गा सातिज्जति ॥ वा ३७. जे भिक्खू पडिग्गहगं निक्कोरेति, निक्कोरावेति, निक्कोरियं ३०२ यो भिक्षुः प्रतिग्रहात् पृथिवीकायं निस्सरति, निस्सारयति, निस्सृतम् हृत्य दीयमानं प्रतिगृह्णाति, प्रतिगृह्णन्तं वा स्वदते । यो भिक्षुः प्रतिग्रहात् अप्कायं निस्सरति, निस्सारयति, निस्सृतम् आहृत्य दीयमानं प्रतिगृह्णाति, प्रतिगृह्णन्तं वा स्वदते । यो भिक्षुः प्रतिगृहात् तेजस्कायं निस्सरति, निस्सारयति, निस्सृतम् आहृत्य दीयमानं प्रतिगृह्णाति, प्रतिगृह्णन्तं वा स्वते । यो भिक्षुः प्रतिग्रहात् कन्दानि वा मूलानि वा पत्राणि वा पुष्पाणि वा फलानि वा बीजानि वा निस्सरति, निस्सारयति, निस्सृतम् आहृत्य दीयमानं प्रतिगृह्णाति, प्रतिगृह्णन्तं वा स्वदते । यो भिक्षुः प्रतिग्रहात् ओषधिबीजानि निस्सरति, निस्सारयति, निस्सृतम् आहृत्य दीयमानं प्रतिगृह्णाति, प्रतिगृह्णन्तं वा स्वदते । यो भिक्षुः प्रतिग्रहात् त्रसप्राणजातिं निस्सरति, निस्सारयति, निस्सृतम् आहृत्य दीयमानं प्रतिगृह्णाति, प्रतिगृह्णन्तं वा स्वदते । यो भिक्षुः प्रतिग्रहकं 'निक्कोरेति', 'निक्कोरावेति', 'निक्कोरियं' आहृत्य निसीहज्झयणं ३१. जो भिक्षु पात्र से पृथिवीकाय को निकालता है, निकलवाता है, निकाले हुए को लाकर दिए जाते हुए पात्र को ग्रहण करता है अथवा ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है। ३२. जो भिक्षु पात्र से अप्काय को निकालता है, निकलवाता है, निकाले हुए को लाकर दिए जाते हुए पात्र को ग्रहण करता है। अथवा ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है। ३३. जो भिक्षु पात्र से तेजस्काय को निकालता है, निकलवाता है, निकाले हुए को लाकर दिए जाते हुए पात्र को ग्रहण करता है। अथवा ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है। ३४. जो भिक्षु पात्र से कन्द, मूल, पत्र, पुष्प, फल अथवा बीज को निकालता है, निकलवाता है, निकाले हुए को लाकर दिए जाते हुए पात्र को ग्रहण करता है अथवा ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है। ३५. जो भिक्षु पात्र से औषधि बीजों (धान्य बीजों) को निकालता है, निकलवाता है, निकाले हुए को लाकर दिए जाते हुए पात्र को ग्रहण करता है अथवा ग्रहण करने वाले को अनुमोदन करता है। ३६. जो भिक्षु पात्र से त्रसप्राणजाति को निकालता है, निकलवाता है, निकाले हुए को लाकर दिए जाते हुए पात्र को ग्रहण करता है अथवा ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है। ३७. जो भिक्षु पात्र के मुख का अपनयन करता है, मुख का अपनयन करवाता है, मुख का
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
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