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________________ ३०० उद्देशक १४: सूत्र १९-२६ निसीहज्झयणं १९. जे भिक्खू 'दुब्भिगंधे मे पडिग्गहे यो भिक्षु “दुब्भि'गंधः मया प्रतिग्रहः १९. 'मुझे दुर्गन्धयुक्त पात्र प्राप्त हुआ लद्धे' त्ति कट्ट बहुदेसिएण कक्केण ___ लब्धः' इति कृत्वा बहुदेसिकेन कल्केन है-ऐसा सोचकर जो भिक्षु बहुदेसिक (तीन वा लोद्धेण वा चुण्णेण वा वण्णेण वा लोध्रेण वा चूर्णेन वा वर्णेन वा प्रसृति से अधिक) कल्क, लोध, चूर्ण वा आघंसेज्ज वा पघंसेज्ज वा, आघर्षेद् वा प्रघर्षेद् वा, आघर्षन्तं वा अथवा वर्ण से पात्र का आघर्षण करता है आघंसंतं वा पघंसंतं वा प्रघर्षन्तं वा स्वदते। अथवा प्रघर्षण करता है और आघर्षण सातिज्जति॥ अथवा प्रघर्षण करने वाले का अनुमोदन करता है। २०. जे भिक्खू अणंतरहियाए पुढवीए यो भिक्षुः अनन्तर्हितायां पृथिव्यां २०. जो भिक्षु अव्यवहित पृथिवी पर पात्र का पडिग्गहं आयावेज्ज वा पयावेज्ज प्रतिग्रहम् आतापयेद् वा प्रतापयेद् वा, आतापन करता है अथवा प्रतापन करता है वा, आयातं वा पयावेंतं वा आतापयन्तं वा प्रतापयन्तं वा स्वदते । और आतापन अथवा प्रतापन करने वाले सातिज्जति॥ का अनुमोदन करता है। २१. जे भिक्खू ससिणिद्धाए पुढवीए यो भिक्षुः सस्निग्धायां पृथिव्यां प्रतिग्रहम् पडिग्गहं आयावेज्ज वा पयावेज्ज आतापयेवा प्रतापयेद्वा, आतापयन्तं वा, आयातं वा पयावेतं वा वा प्रतापयन्तं वा स्वदते। सातिज्जति॥ २१. जो भिक्षु सस्निग्ध पृथिवी पर पात्र का आतापन करता है अथवा प्रतापन करता है और आतापन अथवा प्रतापन करने वाले का अनुमोदन करता है। २२. जे भिक्खू ससरक्खाए पुढवीए यो भिक्षुः ससरक्षायां पृथिव्यां प्रतिग्रहम् २२. जो भिक्षु सरजस्क पृथिवी पर पात्र का पडिग्गहं आयावेज्ज वा पयावेज्ज आतापयेद् वा प्रतापयेद्वा, आतापयन्तं आतापन करता है अथवा प्रतापन करता है वा, आयातं वा पयावेतं वा वा प्रतापयन्तं वा स्वदते। और आतापन अथवा प्रतापन करने वाले सातिज्जति॥ का अनुमोदन करता है। २३. जे भिक्खू मट्टियाकडाए पुढवीए यो भिक्षुः मृत्तिकाकृतायां पृथिव्यां २३. जो भिक्षु सचित्त मिट्टी युक्त पृथिवी पर पडिग्गहं आयावेज्ज वा पयावेज्ज प्रतिग्रहम् आतापयेद् वा प्रतापयेद् वा, पात्र का आतापन करता है अथवा प्रतापन वा, आयातं वा पयावेंतं वा आतापयन्तं वा प्रतापयन्तं वा स्वदते। करता है और आतापन अथवा प्रतापन सातिज्जति॥ करने वाले का अनुमोदन करता है। २४. जे भिक्खू चित्तमंताए पुढवीए यो भिक्षुः चित्तवत्यां पृथिव्यां प्रतिग्रहम् पडिग्गहं आयावेज्ज वा पयावेज्ज आतापयेद्वा प्रतापयेद्वा , आतापयन्तं वा, आयावेंतं वा पयावेतं वा वा प्रतापयन्तं वा स्वदते। सातिज्जति॥ २४. जो भिक्षु सचित्त पृथिवी पर पात्र का आतापन करता है अथवा प्रतापन करता है और आतापन अथवा प्रतापन करने वाले का अनुमोदन करता है। २५. जे भिक्खू चित्तमंताए सिलाए यो भिक्षुः चित्तवत्यां शिलायां प्रतिग्रहम् २५. जो भिक्षु सचित्त शिला पर पात्र का पडिग्गहं आयावेज्ज वा पयावेज्ज आतापयेद् वा प्रतापयेद्वा, आतापयन्तं आतापन करता है अथवा प्रतापन करता है वा, आयातं वा पयावेंतं वा वा प्रतापयन्तं वा स्वदते। और आतापन अथवा प्रतापन करने वाले सातिज्जति॥ का अनुमोदन करता है। २६. जे भिक्खू चित्तमंताए लेलूए यो भिक्षुः चित्तवति लेलूए' प्रतिग्रहम् २६. जो भिक्षु सचित्त ढेले पर पात्र का
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
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