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________________ २८० निसीहज्झयणं उद्देशक १३ : सूत्र ४०-४९ ४०.जे भिक्खू विरेयणं करेति, करेंतं वा सातिज्जति॥ यो भिक्षुः विरेचनं करोति, कुर्वन्तं वा स्वदते। ४०. जो भिक्षु विरेचन करता है अथवा करने __वाले का अनुमोदन करता है। ४१. जे भिक्खू वमण-विरेयणं करेति, करेंतं वा सातिज्जति॥ यो भिक्षुः वमनविरेचनं करोति, कुर्वन्तं वा स्वदते। ४१. जो भिक्षु वमन-विरेचन करता है अथवा __ करने वाले का अनुमोदन करता है। ४२. जे भिक्खू अरोगे य परिकम्मं करेति, करेंतं वा सातिज्जति॥ यो भिक्षुः अरोगे च परिकर्म करोति, ४२. जो भिक्षु आरोग्य-प्रतिकर्म (नीरोग होने कुर्वन्तं वा स्वदते। पर भी चिकित्सा) करता है अथवा करने वाले का अनुमोदन करता है। पासत्थादि-वंदण-पसंसण-पदं ४३. जे भिक्खू पासत्थं वंदति, वंदंतं वा सातिज्जति॥ पार्श्वस्थादि-वंदन-प्रशंसन-पदम् यो भिक्षुः पार्श्वस्थं वन्दते, वन्दमानं वा स्वदते। पार्श्वस्थादि-वंदन-प्रशंसन-पद ४३. जो भिक्षु पार्श्वस्थ को वन्दना करता है अथवा वन्दना करने वाले का अनुमोदन करता है। ४४. जे भिक्खू पासत्थं पसंसति, यो भिक्षुः पार्श्वस्थं प्रशंसति, प्रशंसन्तं पसंसंतं वा सातिज्जति॥ वा स्वदते। ४४. जो भिक्षु पार्श्वस्थ की प्रशंसा करता है अथवा प्रशंसा करने वाले का अनुमोदन करता है। ४५. जे भिक्खू ओसण्णं वंदति, वंदंतं वा सातिज्जति॥ यो भिक्षुः अवसन्नं वन्दते, वन्दमानं वा स्वदते। ४५. जो भिक्षु अवसन्न को वन्दना करता है अथवा वन्दना करने वाले का अनुमोदन करता है। ४६. जे भिक्खू ओसण्णं पसंसति, यो भिक्षुः अवसनं प्रशंसति, प्रशंसन्तं वा पसंसंतं वा सातिज्जति॥ स्वदते। ४६. जो भिक्षु अवसन्न की प्रशंसा करता है अथवा प्रशंसा करने वाले का अनुमोदन करता है। ४७. जे भिक्खू कुसीलं वंदति, वंदंतं वा सातिज्जति॥ यो भिक्षुः कुशीलं वन्दते, वन्दमानं वा स्वदते। ४७. जो भिक्षु कुशील को वन्दना करता है अथवा वन्दना करने वाले का अनुमोदन करता है। ४८. जे भिक्खू कुसीलं पसंसति, पसंसंतं वा सातिज्जति॥ यो भिक्षुः कुशीलं प्रशंसति, प्रशंसन्तं वा स्वदते। ४८. जो भिक्षु कुशील की प्रशंसा करता है अथवा प्रशंसा करने वाले का अनुमोदन करता है। ४९. जे भिक्खू नितियं वंदति, वंदंतं वा सातिज्जति॥ यो भिक्षुः नैत्यिकं वन्दते, वन्दमानं वा स्वदते। ४९. जो भिक्षु नैत्यिक को वन्दना करता है अथवा वन्दना करने वाले का अनुमोदन करता है।
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
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