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________________ आमुख २५२ निसीहज्झयणं गुरु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त प्राप्त होता है, जबकि गोबर अथवा मलहम आदि से व्रण का आलेपन विलेपन करने से लघुचातुर्मासिक। ___ आयारचूला के बारहवें अध्ययन 'रूव-सत्तिक्कयं' में सोलह सूत्रों में विविध प्रकार के रूपों को चक्षुदर्शन की प्रतिज्ञा से–चक्षुरिन्द्रिय की प्रीति के लिए देखने के संकल्प का निषेध किया गया है। प्रस्तुत उद्देशक के 'चक्खुदंसण-पडिया-पदं तथा रूवासत्ति पदं' में उसकी समरूपता के दर्शन होते हैं। ग्रामवध, नगरवध आदि, ग्राममहोत्सव, नगरमहोत्सव आदि, ग्रामपथ, नगरपथ आदि के विषय में आयारचूला में कोई निषेध उपलब्ध नहीं होता, जबकि प्रस्तुत उद्देशक में उसको देखने के संकल्प से जाने वाले के लिए प्रायश्चित्त का कथन किया गया है। इसी प्रकार आयारचूला में आराम, उद्यान आदि, अट्ट, अट्टालिका, त्रिक, चतुष्क आदि को देखने का निषेध किया गया है, परन्तु प्रस्तुत उद्देशक में इनके विषय में प्रायश्चित्त का कथन नहीं किया गया है। इस तुलना से ऐसा प्रतीत होता है कि आयारचूला में निषिद्ध स्थानों के समान प्रस्तुत उद्देशक में उक्त स्थान भी इस तथ्य की ओर संकेत करते हैं कि वे सभी स्थान, जिन्हें देखने का प्रयोजन मात्र चक्षुरिन्द्रिय की प्रीति हो, जिन्हें देखकर राग अथवा द्वेष की उत्पत्ति अथवा वृद्धि हो, उन सब स्थानों को देखने जाने का निषेध है। प्रस्तुत आगम के अनुसार उस भिक्षु को लघुचातुर्मासिक प्रायश्चित्त प्राप्त होता है। प्रस्तुत उद्देशक के अंतिम सूत्र में पांच महार्णव, महानदियों को एक मास में दो बार अथवा तीन बार नौका से अथवा भुजाओं से तैरने का प्रायश्चित्त प्रज्ञप्त है। ठाणं एवं कप्पो (बृहत्कल्प सूत्र) में गंगा, यमुना, सरयू आदि पांच नदियों के उत्तरण एवं संतरण का निषेध किया गया है। कप्पो (बृहत्कल्प सूत्र) में एरावती के स्थान पर कोशिका को महानदी माना गया है। वहां एरावती, जो कुणाला में प्रवहमान है, उसे जंघा संतार्य मानते हुए उसे पार करने की वही विधि बताई गई है, जो आयारचूला में 'जघासंतारिम-उदग-पद' में बताई गई है। भाष्यकार ने इस प्रसंग में संघट्ट, लेप, थाह, अथाह, संतरण-उत्तरण आदि की परिभाषाएं बताते हए नौका-विहार से होने वाले दोषों एवं तत्सम्बन्धी अपवादों तथा यतना आदि की विस्तार से चर्चा की है। १. (क) ठाणं ५/९८ (ख) कप्पो ३/३४ २. वही, ३/३४ ३. निभा. ४२०९-४२५५
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
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