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________________ उद्देशक ११ : टिप्पण २४८ हाथों से पकड़ कर लटकते हुए गिरना अथवा वृक्ष पर समपाद स्थित होकर बिना उछले गिरना प्रपतन कहलाता है। वृक्ष पर स्थित व्यक्ति का उछल कर गिरना अथवा हाथों के सहारे लटककर झूलते हुए गिरना प्रस्कन्दन कहलाता है। ३. वलयमरण - संयमयोगों से भ्रष्ट होकर हीनसत्त्व व्यक्ति का अकाम मरण अथवा गला घोंटकर मरना वलयमरण है। ४. वशार्त्तमरण-इन्द्रिय विषयों के वशीभूत होकर अथवा राग-द्वेष के वशीभूत होकर मरना वशार्त्त मरण है। विजयोदया में वशात मरण के चार भेद बताए गए हैं-इन्द्रियवशालं, वेदनावशार्त्त, कषायवशार्त्त और नोकषायवशार्त्त । ५. तद्भवमरण - वर्तमान में जिस भव (मनुष्य अथवा तिच भव) में है, उसी भाव के आयुष्य के हेतुओं में वर्तन करते हुए पुनः १. निभा. गा. ३८०४ - ओलंबिऊण समपाइतं च तरुणो उ पवडणं होति । वही पक्खंदणुण्यतित्ता, अंदोलेऊण वा पडणं । २. ३. वही, भा. ३ चू. पू. २९१ संजमजोगेसु वलंतो हीणसत्ताए जो अकामगो मरइ एवं वलयमरणं, गलं वा अप्पणो वलेइ । ४. वही इंदियविसएस रामदोससट्टो मरंतो वट्टमरणं मढ़। ५. उत्तर. पृ. १२९ - ( अध्ययन ५ का आमुख - विजयो. वृ. पृ. ९९,९०) ६. निभा. भा. ३ चू. पृ. २९२ - जम्मि भवे वट्टइ तस्सेव भवस्स हेउसु निसीहज्झयणं उसी भव में उत्पन्न होने के इच्छुक प्राणी का उसी आयुष्य का बन्धन कर मरना तद्भवमरण है। ६. अन्तः शल्यमरण-बाण आदि की नोक के शरीर में रह जाने से होने वाला मरण द्रव्य अन्तःशल्यमरण तथा मूल या उत्तर गुणों से संबद्ध अतिचारों का प्रतिसेवन कर आलोचना किए बिना अथवा मायापूर्वक आलोचना करके मरना भाव अन्तःशल्यमरण है। ७. वैहायसमरण - रस्सी आदि से फंदा डालकर मरना हासमरण है।" ८. पृष्ठमरण गाय, हाथी आदि के कलेवर में प्रविष्ट होकर गुद्ध ( गीध पक्षी या मांस-गृद्ध मृगाल आदि प्राणी) के द्वारा स्वयं का भक्षण करवाकर प्राणत्याग करना गृद्धपृष्ठ मरण है। " माणो आउयंबंधित्ता पुणो तत्थोववज्जिकामस्स जं मरणं, तं तब्भवमरणं । ७. वही, पृ. २९२- दव्वे णारायादिणा सल्लियस मरणं, भावे मूलुत्तराइबारे पडिसेवित्ता गुरुणो अणालोड़ता पलितंयमाणस्स वा भावसल्लेग सल्लियस एरिसस्स अविगडभावस्स अंतोसल्लमरणं । वही बेहाणसं रज्जुए अप्पाणं उल्लंबे । वही गिद्धहिं हुं गिद्ध गर्भक्षितव्यमित्यर्थः तं गोमाइकलेवरे अत्ताणं पक्खिवित्ता गिद्धेहिं अप्पाणं भक्खावेइ । ८. ९.
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
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