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________________ उद्देशक ११ : सूत्र ६९-७६ विप्रयास - पदं ६९. जे भिक्खू अप्पाणं विप्परियासेति, विप्परियासेंतं वा सातिज्जति ।। ७०. जे भिक्खू परं विप्परियासेति, विप्परियासेंतं वा सातिज्जति ।। मुहवण्ण-पदं ७१. जे भिक्खू मुहवणं करेति, करेंतं वा सातिज्जति ।। वेरज्ज - विरुद्ध - रज्ज -पदं ७२. जे भिक्खू वेरज्ज - विरुद्ध-रज्जसि सज्जं गमणं सज्जं आगमणं सज्जं गमणागमणं करेति, करेंतं वा सातिज्जति ॥ दियाभोयण - अवण्ण-पदं ७३. जे भिक्खू दियाभोयणस्स अवणं वयति, वयंतं वा सातिज्जति ।। राइभोयण-वण्ण-पदं ७४. जे भिक्खू राइभोयणस्स वण्णं वयति, वयंतं वा सातिज्जति ।। दिया - रत्ति भोयण-पदं ७५. जे भिक्खू दिया असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेत्ता दिया भुंजति, भुंजंतं सातिज्जति ॥ वा ७६. जे भिक्खू दिया असणं वा पाणं वा २३८ विपर्यास-पदम् यो भिक्षुः आत्मानं विपर्यासयति, विपर्यासयन्तं वा स्वदते । यो भिक्षुः परं विपर्यासयति, विपर्यासयन्तं वा स्वदते । मुखवर्ण-पदम् यो भिक्षुः मुखवर्णं करोति, कुर्वन्तं वा स्वदते । वैराज्य - विरुद्धराज्य-पदम् यो भिक्षुः वैराज्य विरुद्धराज्ये सद्यः गमनं सद्यः आगमनं सद्यः गमनागमनं करोति, कुर्वन्तं वा स्वदते । दिवा भोजनावर्ण-पदम् यो भिक्षुः दिवाभोजनस्य अवर्णं वदति, वदन्तं वा स्वदते । रात्रिभोजन-वर्ण-पदम् यो भिक्षुः रात्रिभोजनस्य वर्णं वदति, वदन्तं वा स्वदते । दिवा - रात्रि भोजन-पदम् यो भिक्षुः दिवा अशनं वा पानं वा खाद्य वा स्वाद्यं वा प्रतिगृह्य दिवा भुङ्क्ते, भुञ्जानं वा स्वदते । यो भिक्षुः दिवा अशनं वा पानं वा खाद्यं निसीहज्झयणं विपर्यास पद ६९. जो भिक्षु स्वयं को विपर्यस्त करता है अथवा विपर्यस्त करने वाले का अनुमोदन करता है 1 ७०. जो भिक्षु दूसरे को विपर्यस्त करता है अथवा विपर्यस्त करने वाले का अनुमोदन करता है। मुखवर्ण पद ७१. जो भिक्षु मुखवर्ण (कुतीर्थ, कुशास्त्र आदि की श्लाघा) करता है अथवा करने वाले का अनुमोदन करता है। " वैराज्य - विरुद्धराज्य-पद ७२. जो भिक्षु वैराज्य अथवा विरुद्धराज्य में सद्यः गमन, सद्यः आगमन और सद्यः गमनागमन करता है अथवा करने वाले का अनुमोदन करता है। दिवाभोजन अवर्ण पद ७३. जो भिक्षु दिवाभोजन (दिन में खाने) का अवर्णवाद करता है अथवा करने वाले का अनुमोदन करता है। रात्रिभोजन-वर्ण पद ७४. जो भिक्षु रात्रिभोजन का वर्णवाद ( श्लाघा) करता है अथवा करने वाले का अनुमोदन करता है। १२ दिवारात्रि भोजन-पद ७५. जो भिक्षु दिन में अशन, पान, खाद्य अथवा स्वाद्य ग्रहण कर दिन में खाता है अथवा खाने वाले का अनुमोदन करता है। ७६. जो भिक्षु दिन में अशन, पान, खाद्य
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
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