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________________ निसीहज्झयणं जायरूवबंधणाणि वा हारपुडबंधणाणि वा मणिबंधणाणि वा मुत्तबंधणाणि वा कायबंधणाणि वा दंतबंधणाणि वा सिंगबंधणाणि वा चम्मबंधणाणि वा सेलबंधणाणि वा चेलबंधणाणि वा अंकबंधणाणि वा संबंधणाणि वा वबंधणाणि वा परिभुंजति, परिभुजंतं वा सातिज्जति ॥ अद्धजोयणमेरा-पदं ७. जे भिक्खू परं अद्धजोयणमेराओ पायवडियाए गच्छति, गच्छंतं वा सातिज्जति ॥ ८. जे भिक्खू परं अद्धजोयणमेराओ सपच्चवायंसि पायं अभिहडं आहट्ट दिज्जमाणं पडिग्गाहेति, पडिग्गार्हते वा सातिज्जति ।। धम्म- अवण्ण-पदं ९. जे भिक्खू धम्मस्स अवण्णं वदति, वदंतं वा सातिज्जति ॥ अधम्म-वण्ण-पदं १०. जे भिक्खू अधम्मस्स वण्णं वदति, वदंतं वा सातिज्जति ॥ पाय-परिकम्म-पदं ११. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा पाए आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा, आमज्जंतं वा पमज्जंतं वा सातिज्जति ।। २२७ हारपुटबन्धनानि वा मणिबन्धनानि वा मुक्ताबन्धनानि वा काचबन्धनानि वा दन्तबन्धनानि वा श्रृंगबन्धनानि वा चर्मबन्धनानि वा शैलबन्धनानि वा चेलबन्धनानि वा अंकबन्धनानि वा शंखबन्धनानि वा वज्रबन्धनानि वा परिभुङ्क्ते, परिभुञ्जानं वा स्वदते । अर्धयोजन 'मेरा' -पदम् यो भिक्षुः परम् अर्धयोजन 'मेराओ ' पात्रप्रतिज्ञया गच्छति, गच्छन्तं वा स्वदते । यो भिक्षुः परम् अर्धयोजन 'मेराओ' सप्रत्यपाये पात्रम् अभिहृतमाहृत्य दीयमानं प्रतिगृह्णाति, प्रतिगृह्णन्तं व स्वदते । धर्मावर्ण-पदम् यो भिक्षुः धर्मस्य अवर्णं वदति, वदन्तं वा स्वदते । अधर्मवर्ण-पदम् यो भिक्षुः अधर्मस्य वर्णं वदति, वदन्तं वा स्वदते । पादपरिकर्म-पदम् यो भिक्षुः अन्यथिकस्य वा अगारस्थितस्य वा पादौ आमृज्याद् वा प्रमृज्याद् वा, आमार्जन्तं वा प्रमार्जन्तं वा स्वदते । उद्देशक ११ : सूत्र ७-११ चर्मबन्धन, दंतबन्धन, श्रृंगबन्धन, शैलबन्धन, चेलबन्धन, अंकबन्धन, शंखबन्धन अथवा वज्रबन्धन से युक्त पात्र का परिभोग करता है अथवा परिभोग करने वाले का अनुमोदन करता है। अर्धयोजनमर्यादा-पद ७. जो भिक्षु पात्र लेने का संकल्प कर अर्धयोजन की मर्यादा से परे (आगे) जाता है अथवा जाने वाले का अनुमोदन करता है । " ८. जो भिक्षु सप्रत्यपाय (विघ्नयुक्त) पथ से अर्धयोजन की मर्यादा से परे सामने से लाकर दिए जाते हुए पात्र को ग्रहण करता है अथवा ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है। धर्म-अवर्ण पद ९. जो भिक्षु धर्म का अवर्णवाद (अकीर्ति/ निन्दा) करता है अथवा अवर्णवाद करने वाले का अनुमोदन करता है। अधर्म-वर्ण पद १०. जो भिक्षु अधर्म का वर्णवाद ( श्लाघा) करता है अथवा वर्णवाद करने वाले का करता है। पादपरिकर्म-पद ११. जो भिक्षु अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ के पैरों का आमार्जन करता है अथवा प्रमार्जन करता है और आमार्जन अथवा प्रमार्जन करने वाले का अनुमोदन करता है।
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
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