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________________ आमुख २२४ निसीहज्झयणं सीमा दोनों के अतिक्रमण का दोषी है। अतः प्रस्तुत उद्देशक में ऐसा करने वाले भिक्षु के लिए प्रायश्चित्त का निरूपण है। प्रस्तुत प्रसंग पढ़ने से सहज ही यह अनुमान होता है कि आयारचूला, कप्पो (बृहत्कल्पसूत्र) एवं णिसीहज्झयणं के रचनाकारों के समक्ष समान परिस्थितियां रही होंगी, तभी उनकी चिन्तन की धारा इतनी एकरूपता के साथ प्रवाहित हुई है। जहां गणना और योग्यता में से अथवा परिमाण एवं गुणवत्ता में से एक के चयन का प्रसंग हो, वहां क्रमशः योग्यता और गुणवत्ता को ही प्रमुखता देनी चाहिए। चाहे प्रसंग प्रव्रज्या या उपस्थापना का हो अथवा सेवा/वैयावृत्य करवाने का, पात्रता का विचार अपेक्षित है। प्रस्तुत उद्देशक के 'अनल पद' के संदर्भ में दीक्षा के अनेक मानदण्डों का भाष्य में सविस्तर उत्सर्गापवाद सहित निरूपण हुआ है। कौन स्त्री अथवा पुरुष कहां, कब तक, किस परिस्थिति में प्रव्रज्या के योग्य होते हैं तथा किन-किन कारणों से सदोष अथवा अयोग्य व्यक्ति को भी दीक्षित किया जा सकता है-इत्यादि का विशद वर्णन करते हुए भाष्यकार एवं चूर्णिकार ने यथास्थान यथौचित्य बालमनोविज्ञान, वृद्धमनोविज्ञान एवं काममनोविज्ञान का सुन्दर चित्रण किया है। ___ दीक्षा के पश्चात् जीवनचर्या के मुख्य अंग हैं-शिक्षा पद-सूत्रग्रहण, अर्थग्रहण, देशदर्शन और शिष्यनिष्पत्ति। इसके पश्चात् यदि आयुष्य दीर्घ हो, संहनन एवं धृति से सम्पन्न हो तो तप, श्रुत, सत्त्व एकत्व एवं बल-इन पांच तुलाओं से स्वयं को तौलकर जिनकल्प, यथालन्द आदि अभ्युद्यतविहार को स्वीकार करे। यदि आयुष्य अल्प हो और अभ्युद्यतविहार की योग्यता न हो तो अभ्युद्यतमरण स्वीकार करे । यदि ये दोनों ही योग्यताएं न हों तो वह बालमरण की ओर अभिप्रेरित होता है। प्रस्तुत उद्देशक में बालमरण के बीस प्रकारों की अनुमोदना एवं प्रशंसा करने वाले के लिए प्रायश्चित्त का कथन किया गया है। निशीथभाष्य एवं चूर्णि में अभ्युद्यतमरण का सत्ताईस द्वारों के द्वारा बड़ा ही सुन्दर वर्णन किया गया है। १. कप्यो १/३७
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
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