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________________ उद्देशक १०: सूत्र ८-१४ २०६ निसीहज्झयणं वागरेति, वागरेंतं वा सातिज्जति। व्याकुर्वन्तं वा स्वदते। कथन करता है अथवा करने वाले का अनुमोदन करता है। ८. जे भिक्खू अणागयं निमित्तं वागरेति, यो भिक्षुः अनागतं निमित्तं व्याकरोति, ८. जो भिक्षु अनागत (भविष्य सम्बन्धी) निमित्त वागरेंतं वा सातिज्जति। व्याकुर्वन्तं वा स्वदते। का कथन करता है अथवा करने वाले का अनुमोदन करता है। सेह-पदं ९. जे भिक्खू सेहं अवहरति, अवहरंतं वा सातिज्जति॥ शैक्ष-पदम् यो भिक्षुः शैक्षम् अपहरति, अपहरन्तं वा स्वदते। शैक्ष-पद ९.जो भिक्षु शैक्ष का अपहरण करता है अथवा अपहरण करने वाले का अनुमोदन करता १०. जे भिक्खू सेहं विप्परिणामेति, यो भिक्षुः शैक्षं विपरिणमयति, १०. जो भिक्षु शैक्ष को विपरिणत करता है विप्पपरिणामेंतं वा सातिज्जति॥ विपरिणमयन्तं वा स्वदते। अथवा विपरिणत करने वाले का अनुमोदन करता है। दिसा-पदं दिशा-पदम् दिशा-पद ११.जे भिक्खू दिसं अवहरति, अवहरंतं वा सातिज्जति॥ यो भिक्षुः दिशम् अपहरति, अपहरन्तं वा स्वदते। ११. जो भिक्षु दिशा का अपहरण करता है अथवा अपहरण करने वाले का अनुमोदन करता है। १२. जे भिक्खू दिसं विप्परिणामेति, यो भिक्षुः दिशं विपरिणमयति, १२. जो भिक्षु दिशा को विपरिणत करता है विप्पपरिणामेंतंवा सातिज्जति॥ विपरिणमयन्तं वा स्वदते। अथवा विपरिणत करने वाले का अनुमोदन करता है। आदेस-पदं आदेश-पदम् आदेश-पद १३. जे भिक्खू बहियावासियं आदेसं यो भिक्षुः बहिर्वासिकम् आदेशं परं १३. जो भिक्षु अन्यगच्छवासी अतिथि भिक्षु परं ति-रायाओ अविफालेत्ता त्रिरात्रात् 'अविप्फालेत्ता' संवासयति, को पूछताछ किए बिना तीन रात से अधिक संवसावेति, संवसावेंतं वा संवासयन्तं वा स्वदते । साथ रखता है अथवा साथ रखने वाले का सातिज्जति॥ अनुमोदन करता है। साहिगरण-पदं साधिकरण-पदम् १४. जे भिक्खू साहिगरणं यो भिक्षुः साधिकरणम् अव्यपशमित- अविओसविय-पाहुडं अकड- प्राभृतम् अकृतप्रायश्चित्तं परं त्रिरात्रात् पायच्छित्तं परं ति-रायाओ ___विप्फालिय-अविप्फालिय' संभुङ्क्ते, विप्फालिय अविष्फालिय सं|जति, संभुञ्जानं वा स्वदते। संभुंजंतं वा सातिज्जति॥ साधिकरण-पद १४. जो कलह कर आया है, उस कलह का व्युपशमन नहीं किया है, प्रायश्चित्त नहीं किया है, ऐसे भिक्षु को, पूछताछ किए बिना अथवा पूछताछ करके जो भिक्षु तीन रात से अधिक उसका संभोज रखता है अथवा संभोज रखने वाले का अनुमोदन करता है।"
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
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