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________________ निसीहज्झयणं १६५ उद्देशक ७: टिप्पण ७. क्षौम-कपास से निर्मित वस्त्र, सूती वस्त्र । १५. अमिल-अमिल का अर्थ है भेड़।१२ उसके सूक्ष्म रोओं ८. दुकूल-दुकूल नामक वृक्ष की छाल को ओखली में कूटकर से निर्मित वस्त्र ।१३ उसके रेशे या सूक्ष्म रोओं से निर्मित वस्त्र। शीलांकसूरि के अनुसार १६. गर्जल-पहनते समय मेघगर्जन या बिजली के समान गौड देश में होने वाली विशिष्ट कपास से निर्मित वस्त्र दुकूल कड़कड़ शब्द करने वाले वस्त्र ।। कहलाता है। १७. स्फटिक स्फटिक के समान स्वच्छ वस्त्र। ५ ९. तिरीटपट-तिरीट नामक वृक्ष की छाल के पट्टसदृश तंतुओं १८. कौतव (कोयव)-चूहे के रोम से बना वस्त्र । से निर्मित वस्त्र। १९. कंबल–भेड़ आदि की ऊन से बना वस्त्र। १०.मालय-मलय देश में होने वाले रेशम के कीड़ों की लार २०. प्रावारक-जंगली जानवरों के रोओं से बना महीन और से निर्मित वस्त्र। मलयज सूत्रों से निष्पन्न वस्त्र मालय कहलाते है। बढ़िया किस्म का दुशाला या तूस।१७ ११. पत्तुण्ण-वल्कल तन्तुओं से निष्पन्न वस्त्र । ' डॉ. २१. कनक-सोने को पिघला कर उसमें रंगे हए सूत से बने जगदीशचन्द्र जैन के अनुसार महाभारत एवं कौटलीय अर्थशास्त्र में वस्त्र।८ भी पत्रोर्ण वस्त्र का उल्लेख आता है। २२. कनककृत-स्वर्णमय किनारी वाले वस्त्र । आचारचूला १२,१३. अंशुक और चीनांशुक-दुकूल वृक्ष के अन्तर्वर्ती की वृत्ति में कनक के समान कान्ति वाले वस्त्रों को कनककान्ति सूक्ष्म रेशों से निर्मित महीन वस्त्र अंशुक तथा सूक्ष्मतर वस्त्र चीनांशुक कहा गया है। कहलाता है। ऐसा माना जाता है कि चीनांशुक चीनी रेशम या २३. कनकपट्ट-स्वर्ण के पट्टों वाले वस्त्र । २१ कोआ रेशम से बनता है। अणुओगद्दाराई में पट्ट, मलय, अंशुक, २४. कनकखचित-सुनहरे धागे के बेल-बूंटे वाले वस्त्र । २२ चीनांशुक एवं कृमिराग को कीटज वस्त्र माना गया है। विशेष हेतु २५. कनकपुष्पित-जिस पर सोने के फूल कढ़े हुए हों। इसे द्रष्टव्य जैन आगम साहित्य में भारतीय इतिहास, पृ. २०७, पाद ट्रिंसल प्रिंटिंग कहते हैं।२४ टिप्पण ३। २६,२७. व्याघ्र चर्मनिर्मित, विव्याघ्र के चर्म से निर्मित क्रमशः १४. देशराग-जिस देश में जो रंगने की विधि हो, उससे रंगा __व्याघ्र एवं चीते की चर्म से निर्मित वस्त्र । २५ हुआ या देशविशेष में रंगा हुआ वस्त्र देशराग है। देशराग नामक २८. आभरण-वस्त्र-षट्पत्र आदि एक ही प्रकार के नमूनों से देश में रंगा हुआ वस्त्र। मंडित वस्त्र ।२६ १. निभा. २, चू.पृ. ३९९-दुगुल्लो रुक्खो, तस्स वागो घेत्तुं उदूखले परिभुज्जमाणा कडंकडेति, गज्जितसमाणसह करेंति ते गज्जला। कुट्टिज्जति....दुगुल्लो । १५. वही-फडिगपाहाणनिभा फाडिया अच्छा इत्यर्थः। २. आचू. टी. २६३-दुकूलं गौडविषयविशिष्टकार्पासिकं । १६. अनु. हारि. वृ. पृ. २२-कुतवं उंदररोमेसु। निभा. भा. २ चू.पृ. ३९९-तिरीडरुक्खस्स वागो, तस्स तंतु पट्टसरिसो १७. पाणिनि., पृ. १३५ सो तिरीलो पट्टो, तम्मि कयाणि तिरीडपट्टाणि । १८. (क) निभा. चू.पृ. ४००-सुवण्णे दुते सुत्तं रज्जति, तेण जं वुतं तं ४. वही-किरीडयलाला मलयविसए मयलाणि पत्ताणि कोविज्जति। कणगं। ५. आचू. टी. २६३-मलयानि-मलयज सूत्रोत्पन्नानि । (ख) जैन आगम.......पृ. २०७-सुवर्ण सुनहरे रंग का धागा होता ६. वही-पत्तुन्नं ति वल्कलतन्तुनिष्पन्नम्। है जो खासकर के रेशमी कीडों से तैयार होता है। ७. जैन आगम....., पृ. २०६, पादटिप्पण ४-पत्रोर्ण का उल्लेख (ग) बृ.भा., गा. ३६६२ वृत्ति। महाभारत २/७८/५४ में है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र २/११/२९/ १९. निभा. भा. २चू.पृ. ४००-अंता जस्स कणगेण कता तं कणगकयं । ११२ के अनुसार यह मगध, पुण्ड्रक तथा सुवर्ण कुड्यक-इन तीन २०. आचू. पृ. २६३-कनकस्येव कान्तिर्येषां तानि कनककान्तीनि । देशों में उत्पन्न होता था। २१. निभा. भा. २, चू.पृ. ४००-कणगेण जस्स पट्टा कता, तंकणगपढें। निभा. भा. २ चू.पृ. ३९९-दुगुल्लातो अभंतरहिते जं उपज्जति तं २२. वही-कणगसुत्तेण फुल्लिया जस्स पाडिया, तं कणगखचितं । अंसुयं, सुहुमतरं चीणंसुयं भण्णति । २३. वही-कणगेण जस्स फुल्लिताउ दिण्णाउ तं कणगफुल्लियं । अणु.सू. ४३। २४. जैन आगम........पृ. २०८-अंग्रेजी में इसे ट्रिंसल प्रिंटिंग कहते निभा. २, चू.पृ. ३९९-जत्थविसए जा रंगविधी ताए, देसे रागा हैं। इसकी छापने की विधि के लिए देखिए-सर जार्जवाट, इंडियन देसरागा। आर्ट एट दिल्ली (१९०३, पृ. २६७) ११. पाइय. २५. निभा. भा. २, चू.पृ. ४००-वग्धस्स चम्म वग्याणि, चित्तगचम्म १२. दे. श. को. विवग्याणि। १३. निभा. २, चू.पृ. ३९९-रोमेसु कया अमिला। २६. वही-एत्थ छपत्रिकादि एकाभरणेन मंडिता। . १४. वही, पृ. ४००-णिम्मला अमिला घट्टिणी घटिता ते ८.
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
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