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________________ निसीहज्झयणं उद्देशक ७ : सूत्र ७९-८३ १६० ७९. जे भिक्खू माउग्गामं मेहुण- यो भिक्षु मातृग्राम मैथुनप्रतिज्ञया वडियाए आगंतारेसु वा आरामागारेसु आगन्त्रागारेषु वा आरामागारेषु वा वा गाहावइकुलेसु वा परियावसहेसु गाहा'पतिकुलेषु वा पर्यावसथेषु वा निषाद्य वा णिसीयावेत्ता वा तुयट्टावेत्ता वा वा त्वग्वर्तयित्वा वा अशनं वा पानं वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं खाद्यं वा स्वाद्यं वा अनुग्रासयेद् वा वा अणुग्घासेज्ज वा अणुपाएज्ज ___ अनुपाययेद्वा , अनुग्रासयन्तं वा वा, अणुग्घासेंतं वा अणुपाएंतं वा अनुपाययन्तं वा स्वदते। सातिज्जति॥ ७९. जो भिक्षु अब्रह्म-सेवन के संकल्प से स्त्री को यात्रीगृहों, आरामगृहों, गृहपतिकुलों अथवा आश्रमों में बिठाकर अथवा सुलाकर अशन, पान, खाद्य अथवा स्वाद्य खिलाता है अथवा पिलाता है और खिलाने अथवा पिलाने वाले का अनुमोदन करता है।' तेइच्छ-पदं ८०. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण वडियाए अण्णयरं तेइच्छं आउट्टति, आउटुंतं वा सातिज्जति॥ चिकित्सा-पदम् चिकित्सा-पद यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया ८०. जो भिक्षु स्त्री के साथ अब्रह्म-सेवन के अन्यतरां चिकित्सां आवर्तते, आवर्तमानं संकल्प से किसी प्रकार की चिकित्सा करता वा स्वदते। है अथवा चिकित्सा करने वाले का अनुमोदन करता है। पोग्गलाणं अवहरण-उवहरण-पदं ८१. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण- वडियाए अमणुण्णाई पोग्गलाई अवहरति, अवहरंतं वा सातिज्जति॥ पुद्गलानामपहरण-उपहरण-पदम् पुद्गलों का अपहरण-उपहरण-पद यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया ८१. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर अमनोज्ञान् पुद्गलान् अपहरति, अपहरन्तं अब्रह्म-सेवन के संकल्प से अमनोज्ञ पुद्गलों वा स्वदते। का अपहरण-विलग करता है अथवा अपहरण करने वाले का अनुमोदन करता है। ८२. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण- यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया ८२. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर वडियाए मणुण्णाई पोग्गलाई मनोज्ञान् पुद्गलान् उपहरति, उपहरन्तं वा अब्रह्म-सेवन के संकल्प से मनोज्ञ पुद्गलों उवहरति, उवहरंतं वा सातिज्जति॥ स्वदते। का उपहरण-संयोग करता है अथवा उपहरण करने वाले का अनुमोदन करता है।' पसु-पक्खि -पदं ८३. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण वडियाए अण्णयरं पसुजातिं वा पक्खिजातिं वा पायंसि वा पक्खंसि वा पुंछसि वा सीसंसि वा गहाय उव्विहति वा पव्विहति वा संचालेति वा, उविहंतं वा पव्विहंतं वा संचालेंतंवा सातिज्जति॥ पशु-पक्षि-पदम् पशु-पक्षी-पद यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया ८३. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर अन्यतरां पशुजाति वा पक्षिजाति वा पादे अब्रह्म-सेवन के संकल्प से किसी पशुजाति वा पक्षे वा पुच्छे वा शीर्षे वा गृहीत्वा अथवा पक्षीजाति को पैर, पंख, पूंछ अथवा उद्विध्यति वा प्रविध्यति वा संचालयति सिर से पकड़ कर ऊंचा उठाता है, उत्पाटन वा, उद्विध्यन्तं वा प्रविध्यन्तं वा करता है, उन्हें पकड़कर छोड़ता है (प्रव्यथित संचालयन्तं वा स्वदते। करता है) अथवा संचालित करता है और उत्पाटित करने, प्रव्यथित करने अथवा संचालित करने वाले का अनुमोदन करता
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
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