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________________ १५८ निसीहज्झयणं उद्देशक ७: सूत्र ६८-७३ अण्णमण्णस्स सीसवारियं करेति, शीर्षद्वारिकां करोति, कुर्वन्तं वा स्वदते। करेंतं वा सातिज्जति॥ परिव्रजन करता हुआ परस्पर एक दूसरे भिक्षु का सिर ढंकता है अथवा ढंकने वाले का अनुमोदन करता है। पुढवी-पदं पृथिवी-पदम् पृथिवी-पद ६८. जे भिक्खू माउग्गामं मेहुण- यो भिक्षुः मातृग्राम मैथुनप्रतिज्ञया ६८. जो भिक्षु अब्रह्म-सेवन के संकल्प से वडियाए अणंतरहियाए पुढवीए अनन्तर्हितायां पृथिव्यां निषादयेद् वा मातृग्राम को अव्यवहित पृथिवी पर बिठाता णिसीयावेज्ज वा तुयट्टावेज्ज वा, त्वग्वर्तयेद्वा, निषादयन्तं वा त्वग्वर्तयन्तं है अथवा सुलाता है और बिठाने वाले अथवा णिसीयावेतं वा तुयथावेंतं वा वा स्वदते। सुलाने वाले का अनुमोदन करता है। सातिज्जति॥ ६९. जे भिक्खू माउग्गामं मेहुण- यो भिक्षुः मातृग्राम मैथुनप्रतिज्ञया ६९. जो भिक्षु अब्रह्म-सेवन के संकल्प से वडियाए ससिणिद्धाए पुढवीए सस्निग्धायां पृथिव्यां निषादयेद् वा मातृग्राम को सस्निग्ध पृथिवी पर बिठाता है णिसीयावेज्ज वा तुयट्टावेज्ज वा, त्वग्वर्तयेद्वा, निषादयन्तं वा त्वग्वर्तयन्तं अथवा सुलाता है और बिठाने अथवा सुलाने णिसीयावेंतं वा तुयथावेंतं वा वा स्वदते। वाले का अनुमोदन करता है। सातिज्जति॥ ७०. जे भिक्खू माउग्गामं मेहुण- यो भिक्षुः मातृग्राम मैथुनप्रतिज्ञया वडियाए ससरक्खाए पुढवीए ससरक्षायां पृथिव्यां निषादयेद् वा णिसीयावेज्ज वा तुयट्टावेज्ज वा, त्वगवर्तयेद्वा, निषादयन्तं वा त्वग्वर्तयन्तं णिसीयावेंतं वा तुयट्टावेंतं वा वा स्वदते । सातिज्जति॥ ७०. जो भिक्षु अब्रह्म-सेवन के संकल्प से मातृग्राम को सरजस्क पृथिवी पर बिठाता है अथवा सुलाता है और बिठाने अथवा सुलाने वाले का अनुमोदन करता है। ७१. जे भिक्खू माउग्गाम मेहुण- __ यो भिक्षुः मातृग्राम मैथुनप्रतिज्ञया ७१. जो भिक्षु अब्रह्म-सेवन के संकल्प से वडियाए मट्टियाकडाए पुढवीए मृत्तिकाकृतायां पृथिव्यां निषादयेद् वा मातृग्राम को सचित्त मिट्टी युक्त पृथिवी पर णिसीयावेज्ज वा तुयट्टावेज्ज वा, त्वगवर्तयेद् वा, निषादयन्तं वा बिठाता है अथवा सुलाता है और बिठाने णिसीयावेतं वा तुयथावेंतं वा त्वगवर्तयन्तं वा स्वदते। अथवा सुलाने वाले का अनुमोदन करता सातिज्जति॥ ७२. जे भिक्खू माउग्गामं मेहुण- यो भिक्षुः मातृग्रामं मैथुनप्रतिज्ञया ७२. जो भिक्षु अब्रह्म-सेवन के संकल्प से स्त्री वडियाए चित्तमंताए पुढवीए चित्तवत्यां पृथिव्यां निषादयेद् वा को सचित्त पृथिवी पर बिठाता है अथवा निसीयावेज्ज वा तुयट्टावेज्ज वा, त्वग्वर्तयेद् वा, निषादयन्तं वा सुलाता है और बिठाने अथवा सुलाने वाले णिसीयावेतं वा तुयट्टावेंतं वा त्वग्वर्तयन्तं वा स्वदते। का अनुमोदन करता है। सातिज्जति॥ ७३. जे भिक्खू माउग्गामं मेहुण- यो भिक्षुः मातृग्राम मैथुनप्रतिज्ञया ७३. जो भिक्षु अब्रह्म-सेवन के संकल्प से स्त्री वडियाए चित्तमंताए सिलाए चित्तवत्यां शिलायां निषादयेद् वा को सचित्त शिला पर बिठाता है अथवा णिसीयावेज्ज वा तुयट्टावेज्ज वा, त्वगवर्तयेद् वा, निषादयन्तं वा सुलाता है और बिठाने अथवा सुलाने वाले णिसीयावेतं वा तुयट्टावेंतं वा त्वगवर्तयन्तं वा स्वदते। का अनुमोदन करता है। सातिज्जति॥
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
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