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________________ निसीहज्झयणं उद्देशक ७: सूत्र ३०-३४ १५० वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा उव्वदृज्ज उद्वर्तेत वा, उल्लोलयन्तं वा उद्वर्तमानं वा, उल्लोलेंतं वा उव्वटेंतं वा वा स्वदते। सातिज्जति॥ चूर्ण अथवा वर्ण का लेप करता है अथवा उद्वर्तन करता है और लेप अथवा उद्वर्तन करने वाले का अनुमोदन करता है। ३०. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण- यो भिक्षु मातृग्रामस्य, मैथुनप्रतिज्ञया ३०. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर वडियाए अण्णमण्णस्स कायंसि वणं अन्योन्यस्य काये व्रणं शीतोदकविकृतेन अब्रह्म-सेवन के संकल्प से परस्पर एक दूसरे सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग- वा उष्णोदकविकृतेन वा उत्क्षालयेद् वा भिक्षु के शरीर पर हुए व्रण का प्रासुक शीतल वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा प्रधावेद वा, उत्क्षालयन्तं वा प्रधावन्तं जल अथवा प्रासुक उष्ण जल से उत्क्षालन पधोएज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोएंतं वा स्वदते। करता है अथवा प्रधावन करता है और वा सातिज्जति॥ उत्क्षालन अथवा प्रधावन करने वाले का अनुमोदन करता है। ३१. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण- यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया ३१. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर वडियाए अण्णमण्णस्स कार्यसि वणं अन्योन्यस्य काये व्रणं 'फुमेज्ज' अब्रह्म-सेवन के संकल्प से परस्पर एक दूसरे फुमेज्ज वा रएज्ज वा, फुतं वा रएंतं ___ (फूत्कुर्याद्) वा रजेद् वा, 'फुमेंतं' भिक्षु के शरीर पर हुए व्रण पर फूंक देता है वा सातिज्जति॥ (फूत्कुर्वन्तं) वा रजन्तं वा स्वदते। अथवा रंग लगाता है और फूंक देने अथवा रंग लगाने वाले का अनुमोदन करता है। गंडादि-परिकम्म-पदं गंडादिपरिकर्म-पदम् ३२. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण- यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया वडियाए अण्णमण्णस्स कायंसि गंडं अन्योन्यस्य काये गण्डं वा पिटकं वा वा पिडयं वा अरइयं वा असियं वा अरतिकां वा अर्शो वा भगन्दरं वा भगंदलं वा अण्णयरेणं तिक्खेणं अन्यतरेण तीक्ष्णेन शस्त्रजातन सत्थजाएणं अच्छिंदेज्ज वा आच्छिन्द्याद् वा विच्छिन्द्याद् वा, विच्छिंदेज्ज वा, अच्छिंदेंतं वा आच्छिन्दन्तं वा विच्छिन्दन्तं वा स्वदते। विच्छिंदेंतं वा सातिज्जति॥ गंडादिपरिकर्म-पद ३२. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर अब्रह्म-सेवन के संकल्प से परस्पर एक दूसरे भिक्षु के शरीर में हुए गंडमाल, फोड़ा, फुसी, अर्श अथवा भगन्दर का किसी तीक्ष्ण शस्त्रजात से आच्छेदन करता है अथवा विच्छेदन करता है और आच्छेदन अथवा विच्छेदन करने वाले का अनुमोदन करता ३३. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण- यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया ३३. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर वडियाए अप्पणो कायंसि गंडं वा अन्योन्यस्य काये गण्डं वा पिटकं वा अब्रह्म-सेवन के संकल्प से परस्पर एक दूसरे पिडयं वा अरइयं वा असियं वा अरतिकां वा अर्शो वा भगन्दरं वा के शरीर में हुए गंडमाल, फोड़ा, फुसी, भगंदलं वा अण्णयरेणं तिक्खणं ___ अन्यतरेण तीक्ष्णेन शस्त्रजातेन आच्छिद्य अर्श अथवा भगन्दर का किसी तीक्ष्ण सत्थजाएणं अच्छिंदित्ता वा वा विच्छिद्य वा पूयं वा शोणितं वा शस्त्रजात से आच्छेदन अथवा विच्छेदन विच्छिंदित्ता वा पूर्व वा सोणियं वा निस्सरेद् वा विशोधयेद् वा, निस्सरन्तं कर पीव अथवा रक्त को निकालता है णीहरेज्ज वा विसोहेज्ज वा, णीहरेंतं वा विशोधयन्तं वा स्वदते। अथवा साफ करता है और निकालने अथवा वा विसोहेंतं वा सातिज्जति॥ साफ करने वाले का अनुमोदन करता है। ३४. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण- वडियाए अण्णमण्णस्स कायंसि गंडं यो भिक्षु मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया अन्योन्यस्य काये गण्डं वा पिटकं वा ३४. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर अब्रह्म-सेवन के संकल्प से परस्पर एक दूसरे
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
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