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________________ निसीहज्झयणं ७९ उद्देशक ४: सूत्र ५२-५८ ५२. जे भिक्खू रण्णारक्खियं यो भिक्षुः अरण्यारक्षितम् अर्थीकरोति, ५२. जो भिक्षु (अपना विद्यातिशय प्रदर्शित अत्थीकरेति, अत्थीकरेंतं वा अर्थीकुर्वन्तं वा स्वदते । कर) अरण्य के आरक्षक को अपना प्रार्थी सातिज्जति॥ बनाता है अथवा प्रार्थी बनाने वाले का अनुमोदन करता है। ५३. जे भिक्खू सव्वारक्खियं यो भिक्षुः सर्वारक्षितम् अर्थीकरोति, ५३. जो भिक्षु (अपना विद्यातिशय प्रदर्शित अत्थीकरेति, अत्थीकरेंतं वा अर्थीकुर्वन्तं वा स्वदते । कर) सर्वआरक्षक को अपना प्रार्थी बनाता सातिज्जति॥ है अथवा प्रार्थी बनाने वाले का अनुमोदन करता है। पाय-परिक्कम-पदं पादपरिकर्म-पदम् पादपरिकर्म-पद ५४. जे भिक्खू अण्णमण्णस्स पाए यो भिक्षुः अन्योन्यस्य पादौ आमृज्याद् ५४. जो भिक्षु परस्पर एक दूसरे भिक्षु के पैरों आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा, वा प्रमृज्याद्वा, आमाजन्तं वा प्रमार्जन्तं का आमार्जन करता है अथवा प्रमार्जन करता आमज्जंतं वा पमज्जंतं वा वा स्वदते। है और आमार्जन अथवा प्रमार्जन करने वाले सातिज्जति॥ का अनुमोदन करता है। ५५. जे भिक्खू अण्णमण्णस्स पाए यो भिक्षुः अन्योन्यस्य पादौ संवाहयेद् ५५. जो भिक्षु परस्पर एक दूसरे भिक्षु के पैरों संवाहेज्ज वा पलिमद्देज्ज वा, वा परिमर्दयेद् वा, संवाहयन्तं वा का संबाधन करता है अथवा परिमर्दन करता संवाहेंतं वा पलिमहेंतं वा परिमर्दयन्तं वा स्वदते । है और संबाधन अथवा परिमर्दन करने वाले सातिज्जति॥ का अनुमोदन करता है। ५६. जे भिक्खू अण्णमण्णस्स पाए यो भिक्षुः अन्योन्यस्य पादौ तैलेन वा ५६. जो भिक्षु परस्पर एक दूसरे भिक्षु के पैरों तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा घृतेन वा वसया वा नवनीतेन वा का तैल, घृत, वसा अथवा मक्खन से णवणीएण वा अब्भंगेज्ज वा अभ्यञ्ज्याद् वा म्रक्षेद् वा, अभ्यञ्जन्तं अभ्यंगन करता है अथवा म्रक्षण करता है मक्खेज्ज वा, अब्भंगेंतं वा मक्खेंतं वा म्रक्षन्तं वा स्वदते। और अभ्यंगन अथवा म्रक्षण करने वाले का वा सातिज्जति॥ अनुमोदन करता है। ५७. जे भिक्खू अण्णमण्णस्स पाए यो भिक्षुः अन्योन्यस्य पादौ लोध्रेण वा ५७. जो भिक्षु परस्पर एक दूसरे भिक्षु के पैरों लोद्धेण वा कक्केण वा चुण्णेण वा कल्केन वा चूर्णेन वा वर्णेन वा उल्लोलयेद् पर लोध, कल्क, चूर्ण अथवा वर्ण का लेप वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा उव्वदे॒ज्ज वा उद्वर्तेत वा, उल्लोलयन्तं वा करता है अथवा उद्वर्तन करता है और लेप वा उल्लोलेंतं वा उव्वटेंतं वा उद्वर्तमानं वा स्वदते। अथवा उद्वर्तन करने वाले का अनुमोदन सातिज्जति॥ करता है। ५८. जे भिक्खू अण्णमण्णस्स पाए यो भिक्षुः अन्योन्यस्य पादौ ५८. जो भिक्षु परस्पर एक दूसरे भिक्षु के पैरों सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग- शीतोदकविकृतेन वा उष्णोदकविकृतेन वा का प्रासुक शीतल जल से अथवा प्रासुक वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा उत्क्षालयेद् वा प्रधावेद वा, उत्क्षालयन्तं उष्ण जल से उत्क्षालन करता है अथवा पधोएज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोएंतं वा प्रधावन्तं वा स्वदते। प्रधावन करता है और उत्क्षालन अथवा वा सातिज्जति॥ प्रधावन करने वाले का अनुमोदन करता है।
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
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