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________________ सम्पादकीय जैन वाङ्मय में आगम साहित्य का गरिमापूर्ण स्थान है। साध्वाचार का पुष्ट आधार आगमों को माना जाता है। बत्तीस आगम जैन श्वेताम्बर तेरापंथ सम्प्रदाय में प्रमाणभूत माने गए हैं। उनमें भी ग्यारह अंगों को स्वतःप्रमाण होने का गौरव प्राप्त है। साधु-साध्वी समुदाय में आगम के स्वाध्याय को महत्त्व प्रदान किया जाता है। प्राचीन काल में आगम-ज्ञान कण्ठाधारित और मस्तिष्काधारित रहता था। समय का चक्र आगे बढ़ा, वह हस्तलेखनाधारित बन गया और वर्तमान में वह मुद्रणाधारित भी बन चुका है। प्रकाशित ग्रन्थों का स्वाध्याय में बहुत उपयोग हो रहा है। मूल पाठ (टेक्स्ट) का स्वाध्याय अच्छा है, परन्तु उसका अर्थबोध और व्याख्याबोध हो जाए तो बहुत अधिक लाभ हो सकता है। संभवतः इसी आधार पर हिन्दी आदि अनेक भाषाओं में आगमों का अनुवाद किया गया है और उन पर भाष्य, टीका, टिप्पण आदि का निर्माण किया गया है। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ सम्प्रदाय के नवमाधिशास्ता परमपूज्य गुरुदेव श्री तुलसी के नेतृत्व और वाचनाप्रमुखत्व में वि.सं. २०१२ में जैन आगमों के सम्पादन, संशोधन, अनुवादन, टिप्पणलेखन आदि का कार्य प्रारम्भ हुआ। आचार्य महाप्रज्ञजी (तत्कालीन मुनि नथमलजी, टमकोर) इस कार्य के मुख्य संवाहक बने । अब तक बत्तीस आगमों का मूलपाठ प्रकाशित हो चुका है। दसवेआलियं, उत्तरज्झयणाणि, अणुओगदाराई, नंदी, सूयगडो, ठाणं, समवाओ, णायाधम्मकहाओ, उवासगदसाओ ये नौ आगम मूलपाठ, हिन्दी अनुवाद और टिप्पण आदि सहित प्रकाशित हो चुके हैं। 'आयारो' पर आचार्य महाप्रज्ञजी द्वारा प्रणीत संस्कृत भाष्य हिन्दी और अंग्रेजी अनुवाद सहित प्रकाशित हो चुका है। भगवई (विआहपण्णत्ती) के चार खण्ड भी मूलपाठ, अनुवाद, संस्कृत छाया और हिन्दी भाष्य सहित प्रकाशित हो चुके हैं। अब 'निसीहज्झयणं' प्रस्तुत किया जा रहा है। इसमें मूलपाठ, संस्कृत छाया, हिन्दी अनुवाद, व्याख्यात्मक टिप्पण एवं परिशिष्ट शोभायमान हो रहे हैं। परमपूज्य गुरुदेव श्री तुलसी का वरदहस्त वाचनाप्रमुखत्व के रूप में प्राप्त है। परमपूज्य गुरुदेव आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के सान्निध्य, निर्देशन और प्रधान-सम्पादकत्व में प्रस्तुत आगम का कार्य गतिमान हुआ। बाद में आचार्य महाप्रज्ञजी द्वारा किया जाने वाला कार्य मैंने संभाला। ऐसे ग्रन्थ के संशोधन आदि का कार्य करने का अवसर मिलना भी अपने आपमें विशिष्ट बात है। प्रस्तुत आगम के अनुवाद, संस्कृतछाया-लेखन, टिप्पणलेखन आदि में हमारी विदुषी शिष्या डॉ. साध्वी श्रुतयशाजी का मुख्य श्रम लगा है। इसमें उनकी प्रतिभा का अच्छा उपयोग हुआ है। इस कार्य में हमारी तीन अन्य शिष्याएं-मुख्यनियोजिका साध्वी विश्रुतविभाजी, डॉ. साध्वी मुदितयशाजी एवं डॉ. साध्वी शुभ्रयशाजी का भी सहकार रहा है। 'निसीहज्झयणं' ग्रन्थ के सम्पादन की सम्पन्नता के अवसर पर मैं अपने महान गुरुद्वय परमपूज्य गुरुदेव श्री तुलसी और परमपूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी का स्मरण करता हूं। आचार्य महाश्रमण
SR No.032459
Book TitleNisihajjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size16 MB
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