SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 88
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कार्यकारणभाव : महाकवि कालिदासकी कृतियोंमें महाकवि कालिदासके काव्यों और नाटकोंमें कार्य-कारण सम्बन्धका अस्तित्व अनेक स्थलोंपर उपलब्ध होता है । भावोंकी अभिव्यञ्जना करते हुए उन्होंने सौन्दर्यानुभूतिकी अलंकृत योजनामें इस सम्बन्धका सुन्दर निर्वाह किया है । यह सार्वजनिक सत्य है कि जीवन और जगत्के सम्बन्धमें रसानुभूतिकी जिस प्रक्रिया द्वारा चित्तका उन्मीलन होता है, वह प्रक्रिया कार्यकारण सम्बन्धमें निहित रहती है । कवि अपने मनके विविधरंगोंमें अनुरञ्जित होकर ही प्रेमवस्तुका भावन करता है, पर नवीन उद्भावनाओंके अवसरपर वह कार्य-कारण भावका आश्रय ग्रहण कर काव्यचमत्कार की सृष्टि करने में समर्थ होता है। तर्क- न्याय मूलक अलंकारोंमें तो कार्यकारण भाव समाहित रहता ही है, पर सादृश्यमूलक, विशेषगम्य, लोकाश्रय न्याय और वाक्यन्याय मूलक अलंकारों में भी कार्य कारणभाव किसी न किसी रूप में पाया जाता है । कविको स्वयं प्रकाश या सहजज्ञान कल्पनाके माध्यमसे प्राप्त होता हैं और यह आत्माके समक्ष बिना किसी तर्क या प्रयासके स्वतः उपस्थित हो जाता है । सौन्दर्यानुभूति के समय व्यक्ति के मनको कोई बौद्धिक कष्ट उठाना नहीं पड़ता । हम किसी रमणीके मुख या गुलाबके पुष्पकी गन्धको किसी शास्त्रीय ज्ञान या कार्यकारण सम्बन्धकी प्रक्रियाका नियोजन किये बिना ही रम्य कह देते हैं । वस्तु विशेषके सौन्दर्यका अनायास ज्ञान या भावन चित्तकी जिस वृत्ति द्वारा होता है, उसे सहजज्ञान तथा ऐसे ज्ञानको स्वयं प्रकाश, सहज या सहजानुभूति कहते हैं । पुष्पगन्धके समान काव्यका सौन्दर्य स्वयं प्रकाश्य होता है, किन्तु उसकी अभिव्यञ्जना प्रस्तुत करते समय तर्क या कार्यकारण सम्बन्धका अवलम्बन ग्रहण करना पड़ता है । यतः संवेदनको रूपायित करना, बिम्ब ढालना सहज ज्ञानका काम है, पर संवेदनके प्रभावको रूपायित करते समय हेतु, तर्क या सम्बन्धका आश्रय अपेक्षित होता है । पात्रोंके शीलस्थापत्य एवं उनके व्यक्तित्वके चित्रण में कार्य-कारण सम्बन्धकी सर्वाधिक प्रतीति होती है । कथानकका गठन भी कार्य-कारण सापेक्ष होता है, कोई भी घटना कार्य-कारणकी श्रृंखलामें आबद्ध होकर ही कथानकका रूप ग्रहण करती है । महाकवि कालिदासके कार्य कारणभाव के विश्लेषणके पूर्व कार्य-कारण सम्बन्धके स्वरूपको अवगत कर लेना आवश्यक है । केशव मिश्रने तर्कभाषामें कारणकी परिभाषा बतलाते हुए लिखा है - 'यस्य कार्यात् पूर्वभावो नियतोऽनन्यथासिद्धश्च तत्कारणम्"" । अर्थात् जिसकी कार्य — उत्पन्न होनेवाले घटादि पदार्थोंसे पहले सत्ता निश्चित हो और जो अन्यथासिद्ध न हो उसको कारण कहते हैं । कारण इस लक्षणमें 'नियत' और 'अनन्यथासिद्धश्च' ये दो विशेषण पद विशेष महत्त्वपूर्ण हैं । 'नियत' कहनेसे कार्योत्पत्ति के समय उपस्थित रहनेवाली अन्य वस्तुओंका निराकरण हो जाता है, किन्तु जिनका अस्तित्व 'नियत' रहता है। उन्होंका ग्रहण होता है । इसी प्रकार १. तर्कभाषा चौखम्बा वाराणसी, सन् १९५३ ई० पू० १९, प्रमाणनिरूपण, काव्य वरूप
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy