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________________ जैन न्याय एवं तत्त्वमीमांसा २५ कार्योत्पत्ति में सहायक अवश्य रहता है । प्रत्येक कार्य उपादान और निमित्त दोनों प्रकार के कारणोंसे उत्पन्न होता है । वलिष्ठ उपादान भी अकेला तब तक कार्य उत्पन्न नहीं कर सकता है, जब तक निमित्त सहायता नहीं करता है । शब्द की अन्तिम ध्वनि अर्थ प्रतीतिमें उपादान कारण है, पर यह उपादान अपने सहाकारी पूर्व वर्णकी अपेक्षा करता है । यद्यपि अन्त्य वर्णके समय में पूर्व वर्णका सद्भाव नहीं है, फिर भी श्रूयमाण पूर्व वर्णका अभाव तो अन्त्य वर्णके समय में विद्यमान है । इस अभावकी सहायतासे अन्त्यवर्ण अर्थ - प्रतीतिमें पूर्ण समर्थ है । जैसे आम्रवृक्ष की शाखापर लगा हुआ आम अपने भारके कारण स्वयं गिरकर अथवा दूसरे किसी कारणसे च्युत होनेपर वह अपना संयोग पृथ्वीसे स्थापित करता है । इस संयोगमें उसके पूर्व : संयोग का अभाव कारण है; अन्यथा पृथ्वीसे उसका संयोग हो ही नहीं सकता । अतएव पूर्व वर्ण- ज्ञान के अभाव से विशिष्ट अथवा पूर्व वर्णज्ञानोत्पन्न संस्कारकी सहायतासे अन्त्यवर्ण अर्थकी प्रतीति करा देता है । पूर्व वर्ण विज्ञानोत्पन्न संस्कार प्रवाहसे अन्त्यवर्णकी सहायताको प्राप्त करता है । प्रथम वर्ण और उससे उत्पन्न ज्ञानसे संस्कारकी उत्पत्ति होती है; द्वितीय वर्णका ज्ञान और उससे प्रथम वर्ण ज्ञानोत्पन्न संस्कारसे विशिष्ट संस्कार उत्पन्न होता है । इसी प्रकार अन्त्य संस्कार तक क्रम चलता रहता है । अतएव इस अन्त्य संस्कारकी सहायतासे अन्त्यवर्ण अर्थकी प्रतीति में जनक होता है । शब्दार्थ की प्राप्ति में सबसे प्रमुख कारण क्षयोपशम रूप शक्ति है, इसी शक्ति के कारण पूर्वापर उत्पन्न वर्णज्ञानोत्पन्न संस्कार स्मृतिको उत्पन्न करता है, जिसकी सहायतास अन्त्यवर्ण अर्थ-प्रतीतिका कारण बनता है । इसी प्रकार वाक्य और पद भी अर्थ प्रतीति में सहायक होते हैं । जैन दर्शनमें कथञ्चित्तादात्म्य लक्षण सम्बन्ध शब्द और अर्थका माना गया है, जिससे स्फोटवादीके द्वारा उठायी गयी शंकाओं को यहाँ स्थान ही नहीं । भद्रबाहु स्वामीने भी शब्द और अर्थके इस सम्बन्धकी विवेचना करते हुए कहा है- अभिहाणं अभियाउ होइ भिन्नं अभिन्नं च । खुर अग्गिमोयगुच्चारणम्मि जम्हा उवयणसवणणं ॥ १ ॥ विच्छेदो न वि दाहो न पूरणं तेन भिन्नं तु । जम्हाय मोयगुच्चारणम्मिभतत्थेव पच्चओ होई ॥२॥ नय होइ स अन्नत्थे तेण अभिन्नं तदत्थाओ । — न्यायावतार पृ० १३ शब्द -- अभिधान अर्थ - अभिधेयसे भिन्न और अभिन्न दोनों ही है । चूंकि खुर, after और मोदक इनका उच्चारण करनेसे वक्ताके मुँह और श्रोताके कान नष्ट या जल या भर नहीं जाते हैं, इसलिये तो अर्थसे शब्द कथञ्चिद्भिन्न हैं 'मोदक' अर्थमें ही ज्ञान होता है और किसी कथञ्चित् भिन्न है | पदार्थ में नहीं होता. शब्द के भेद शब्दके मूलतः दो भेद हैं-- भाषा रूप प्रकारका है- -अक्षर रूप और अनक्षर रूप । मनुष्योंके और चूंकि 'मोदक' शब्दसे इसलिये अपने अर्थसे शब्द और अभाषा रूप । भाषा रूप शब्द भी दो व्यवहार में आनेवाली अनेक बोलियाँ
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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