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________________ ४१४ भारतीय संस्कृति के विकास में जैन वाङ्मयका अवदान उड़ना वाला चन्द्रमा, नक्षत्र श्वेत पुष्प और नदी, तालाब आदिको देखता है । अपनी-अपनी प्रकृति के अनुकूल देखे गये स्वप्न निरर्थक होते हैं अर्थात् वाताधिक प्रकृतिवाला आकाश में 'देखे या वात प्रकृति सम्बन्धी अन्य स्वप्नोंको देखे तो ऐसे स्वप्नोंका फल नहीं होता है । ज्योतिषिक विचारधारा - उपलब्ध जैन ज्योतिषमें निमित्तशास्त्र अपना विशेष स्थान रखता है। जहां जैनाचार्योंने जीवन में घटनेवाली अनेक घटनाओंके इष्टानिष्ट कारणोंका विश्लेषण किया है, वहाँ स्वप्न के द्वारा भावी जीवनकी उन्नति और अवनतिका विश्लेषण भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ढंग से किया है । यों तो प्राचीन वैदिक धर्मावलम्बी ज्योतिषशास्त्रियोंने भी इस विषयपर पर्याप्त लिखा है, पर जैनाचार्यों द्वारा प्रतिपादित स्वप्न शास्त्र में कई विशेषताएं हैं । वैदिक ज्योतिषशास्त्रियोंने ईश्वरको सृष्टिकर्त्ता माना है, इसलिये स्वप्नको भी ईश्वरकी प्रेरित इच्छाओंका फल बताया है । वराहमिहिर, बृहस्पति और पौलस्त्य आदि विख्यात गणोंने ईश्वरकी प्रेरणाको ही स्वप्न में प्रधान कारण बताया है । फलाफलका विवेचन जैनाजैन ज्योतिषशास्त्र में दश - पाँच स्थलोंको छोड़कर प्रायः समान ही है । जैन स्वप्न शास्त्र में ' प्रधानतया निम्न सात प्रकारके स्वप्न बताये गये हैं । (१) दृष्ट जो कुछ जागृत अवस्थामें देखा हो उसीको स्वप्नावस्थामें देखा जाय; (२) श्रुत-सोनेके पहले कभी किसीसे सुना हो उसीको स्वप्नावस्थामें देखा जाय; (३) अनुभूत - जिसका जागृतावस्था में किसी भाँति अनुभव किया हो, उसीको स्वप्नमें देखे; (४) प्रार्थित - जिनकी जागृतावस्थामें प्रार्थना - इच्छा की हो उसीको स्वप्न में देखे; (५) कल्पित - जिसकी जागृतावस्थामें कभी भी कल्पना की गई हो उसीको स्वप्न में देखे; (६) भाविक - जो कभी न तो देखा गया हो और न सुना हो, पर जो भविष्य में होनेवाला हो उसे स्वप्न में देखा जाय और (७) दोषज - बात, पित्त और कफ इनके विकृत हो जानेसे देखा जाय । इन सात प्रकारके स्वप्नोंमें से पहले के पांच प्रकारके स्वप्न प्रायः निष्फल होते हैं, वस्तुतः भाविक स्वप्नका फल ही सत्य होता है । रात्रिके प्रहरके अनुसार स्वप्नका फल -रात्रिके पहले प्रहरमें देखे गये स्वप्न एक वर्षमें; दूसरे प्रहरमें देखे गये स्वप्न आठ महीने में ( चन्द्रसेन मुनिके मत से ७ महीने में ); तीसरे प्रहर में देखे गये स्वप्न तीन महीने में; बौथे प्रहर में देखे गये स्वप्न एक महीने में (वराहमिहिर के मतसे १६ दिनमें ); ब्राह्म मुहूर्त्त ( उषाकाल) में देखे गये स्वप्न दस दिन में और प्रातः काल सूर्योदयसे कुछ पूर्व देखे गये स्वप्न अति शीघ्र शुभाशुभ फल देते हैं । अब जैनाजैन ज्योतिष शास्त्र के आधारपर कुछ स्वप्नोंका फल नीचे उद्धृत किया जाता है— अगुरु - जैनाचार्य भद्रबाहुके मतसे—- काले रंगका अगुरु देखनेसे निःसन्देह अर्थलाभ होता है । जैनाचार्य चन्द्रसेन मुनिके मतसे सुख मिलता है। बराहमिहिरके मतसे धन लाभ के साथ स्त्री लाभ भी होता है । बृहस्पति के मतसे—इष्ट मित्रोंके दर्शन, और आचार्य मयूख एवं दैवज्ञवर्य गणपति के मत से अर्थ लाभके लिये विदेश गमन होता है । विशेष जानने के लिये देखो - ९. भद्रबाहु निमित्त शास्त्रका स्वप्नाध्याय और केवलज्ञानहोराका स्वप्न प्रकरण
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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