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________________ ३९४ भारतीय संस्कृतिके विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान इस उपपत्तिके आधार पर एक्कोणमवणिइंदयमद्धिय वग्गिज्ज मूलसंजुत्तं । अट्ठगुणं पंचजुदं पुढविदयताडिदम्मि पुढविधणं ॥२-६५ __ अर्थात्-गच्छके प्रमाणमें से एक घटाकर आधेका वर्ग कर देनेसे जो आवे इसे गच्छमेंसे एक घटाकर आधा कर जोड़ देना चाहिए । पश्चात् इसे चयसे गुणाकर गुणनफलमें पंचगुणित चय जोड़ देनेपर सर्वघनका प्रमाण प्रकारान्तरसे आता है । १)xच० + ५४ ग० यथा ग० १३, चय ८ १३-१) ) = ३६ + ६%D४२४८3३३६+५= ३४१x१३ - १ /ग -११ - . - -. ३६+ ४४३३ रु. उपर्युक्त उपपत्तिसे यह सूत्र निष्पन्न हो गया३ सूत्र--संकलित धन लाने का प्रकारान्तर ___ चयहदमिट्ठाधियपदमेक्काधियइट्ठगुणिदचयहीणं । दुगुणिदवदणेण जुदं पददलगुणिदम्मि होदि संकलिदं ।। २-७० अर्थ-इष्टसे अधिक पदसे चयको गुणा करके उसमें से एक अधिक इष्टसे गुणित चय को घटा देने पर जो शेष रहे उसमें दुगुने मुखको जोड़कर गच्छके आधेसे गुणा करनेपर संकलित धन होता है। उदाहरण-(ग+ इ) च - (इ + १) च + २ मु०; गच्छ ४९, इष्ट ७, चय ८, मुख ५ = {(४९ + ७)- ८} - {(७ + १४८) + (५ x २)}x ५९ =९६५३ उपपत्ति प्रथम सूत्रकी उपपत्तिमें आये हुए (क) फलके आधारसे । स = {{ग – १) च + २मु = {(ग+ इ - इ - १)च + २मु} : = {(ग+ इ)च - (इ + १)च + २मु ४ सूत्र-संकलित धन लानेका अन्य प्रकार-- अद्वत्तालं दलिदं गुणिदं अट्रेहि पंचरूवजदं । उणवण्णाए पहदं सव्वधणं होइ पुढवीणं ।। २-७१ अर्थ-अड़तालीसके आधेको आठसे गुणा करके उसमें पांच मिला देनेपर प्राप्त हुई राशिको ४९ से गुणा करनेपर सर्वधनका प्रमाण होता है । गणित सूत्र-३८४८+ ५}४९=९६५३
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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