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________________ ३६८ भारतीय संस्कृतिक विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान आवेगमें परिवर्तन मके - मक । परिवर्तनमें लगा दिया हो तो न→मके - मक ।+मके - मक न मके-मक_म (के-क) बल प-यान मात्रा त्वरण विरात्मक और गत्यात्मक जड़ताको स्थिति सिदि "गतिपरिणामिनां जीवपुद्गलानां गत्युपग्रहे कर्तव्य धर्मास्तिकायः, साधारणश्रयो जलवन्मत्स्यगमने, तथा स्थिति परिणामिनां जीवपुद्गलानां स्थित्युपग्रहे कर्तव्य अधर्मास्तिकायः साधारणाश्रयः ।" अर्थात् गतिमान जीव और पुद्गलोंकी गतिमें धर्म द्रव्य, स्थितिमान जीव और पुद्गलोंकी स्थितिमें अधर्मद्रव्य उपकारक है। इस कथनसे यह निष्कर्ष निकलता है कि वस्तुओंकी अवस्था विशेष बने । इनका कोई बाह्यकारण भी है, बाह्यकारणका दूसरा नाम 'बल' है, जो समानुपाती है, स्थानगत शक्ति (Potential energy) का वर्णन यत्वार्थ सूत्रके "गतिशरीर परिग्रहाभिमानतो हीनाः" ४।२१ की व्याख्यामें बताया गया है "ततः परतो जघन्यास्थितीनामे कैकहीना भूमयो यावतुतीयेति । गतपूर्वाश्च गमिश्यन्ति च तृतीयां देवाः परतस्तु सत्यापि गतिविषये न गत पूर्वा नापि गमिष्यन्ति । महानुभावक्रियातः औदासीन्याच्चोपर्युपारि देवान गतिरतयो भवन्ति ।"२ जिनकी गतिका विषय भूतक्षेत्र तीसरी पृथ्वीसे अधिक है वे, गमन शक्तिके रहनेपर भी वहां तक गमन नहीं करते । न पूर्व कालमें कभी गमन किया है और न भविष्यमें कभी करेंगे । उनकी गतिको बतलानेका अर्थ केवल उनकी कार्यक्षमता बताना है। उनकी शक्तिका व्यय नहीं होता, वह कार्य रूपमें परिणत नहीं होती, पर वे उतना काम करनेका सामर्थ्य रखते हैं । परिणामोंको शुभताके कारण वे इधर उधर जानेमें उदासीन रहते हैं। उपर्युक्त वक्तव्यसे 'गति सिद्धान्त'में निहित 'जड़त्व' का नियम अभिव्यक्त होता है। 'बल' का संयोग न होनेसे विरामावस्था बनी रहती है। यद्यपि गमन शक्ति है, पर प्रवत्ति बलके अभावमें सम्भव नहीं। इस प्रकार गत्यात्मक और विरामात्मक जड़ताकी सिद्धि होती है। प्रकाश सिद्धान्त ___जैन ग्रन्थोंमें प्रकाश शक्तिको दो भागोंमें विभक्त किया जाता है-१. आताप और २. उद्योत । इन दोनोंको पुद्गल द्रव्यके पर्याय माना है। आतापके अन्तर्गत सूर्यका प्रकाश, अग्निकी रोशनी और बिजली बत्तीका प्रकाश ग्रहण किया गया है और उद्योतमें चन्द्रमाका १. सर्वार्थसिद्धि, ज्ञानपीठ संस्करण ५।७७, पृ. २८२ । २. पं० खूबचन्द्र शास्त्री द्वारा सम्पादित-तत्वार्थधिगमभाष्य, बम्बई १९३२ ई०, पृ० २२३ ।
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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