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________________ ज्योतिष एवं गणित ३६५ भाग देने पर जो लब्धि आवे उसका अभीष्ट अर्द्धच्छेद राशिमें भाग देनेसे लब्ध प्रमाण इष्ट ۱٫۹ यथाराशिको रखकर परस्पर गुणा करने पर अर्द्धच्छेदोंसे राशिका परिज्ञान होता है। देयराशि - २ इसका अद्धच्छेद १, इष्टराशि १६, इसके अर्द्धच्छेद ४, अभीष्ट अर्द्धच्छेद ८ अतः ४ ÷ १ = ४, ८÷४ - २, १६ x १६ - २५६ आठ अ च्छेदोंकी उक्त राशि । गुण्य राशिके अर्द्धच्छेदोंको गुणाकार राशिके अद्धच्छेदोंमें जोड़ देने पर गुणनफल राशिके अर्द्धच्छेद आते हैं । अंकगणितके अनुसार १६ गुण्यराशि, ६४ गुणाकार राशि और गुणनफल राशि = १६ × ६४ = १०२४ । १६ गुण्यराशि = (२) ४, गुणाकार ६४ = (२) T, (२) * x (२)T = (२)° = गुणनफल १०२४ = (२) १० न-म म म (क) = क । १. २. क = क भाज्य राशिके अर्द्धच्छेदो में से भाजकके अर्द्धच्छेदोंको घटानेसे भाग्यफल राशिके अर्द्धच्छेद आते हैं | अंकगणितानुसार भाज्य राशि २५६ भाजक ४ और भाग्यफल ६४ है । अतः २५६ = (२)८, ४ = (२) २, ६४ = (२); (२) ^ (२) ÷ ± = (२) T, भाग्यफल राशि ६४ = (२)' । न न १. म न अ अ म X घाताङ्कसिद्धान्त (Law of Indices) घातात सिद्धान्तका प्रयोग बड़ी-बड़ी संख्याओंको सूक्ष्मता और सरलता से व्यक्त करने के लिए किया गया है । जब किसी संख्याका संख्यातुल्य घात किया जाता है, तो उसे वर्गितसंवर्गित संख्या कहा जाता है । यथा ( २ ) २. - ४ (२) २२२ - ४४ = २५६ = क २५६ ३. [ ( २ ) २२ ] [ (२)± २२] = २५६ न+म म-न भ म न अ अ अ म-न म क = करें,कन ÷ क १. दिष्णच्छेदेणवहिदवूठ्ठच्छेदेहिं पयदविरलणं मजिदे । लद्धमिदट्ठरासीणष्णोष्णहदीए होदि पयदधणं ॥ - गोम्मटसार ( जीवकाण्ड) गाथा २१४
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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