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________________ ३४२ भारतीय संस्कृतिके विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान कृष्णे शरीरे सोमस्य शूद्राणां वधमादिशेत् । पीते शरीरे सोमस्य वैश्यानां वधमादिशेत् ॥ रक्ते शरीरे सोमस्य गज्ञां च वधमादिशेत् । -वृद्धगर्ग, विप्पाणं देइ भयं वाहिरण्णो तहा णिवेदेई । पोलो खत्तियणासं धूसरवण्णो य वयसानं ॥३८॥ किंण्णो सुद्द विणासो चित्तलवणोय हवइ पयईऊ। दहिखीरसंखवण्णो सव्वम्हिय पादिहदो चंदो ॥३९।। -ऋषिपुत्र उपयुक्त तुलनात्मक विवेचनका तात्पर्य यही है कि संहिताकालकी प्रायः सभी रचनाएँ मिलती जुलती हैं । इस कालके लेखकोंने नवीन बातें बहुत थोड़ी कही हैं । तथा फल प्रतिपादनको प्रणाली भी गणितपर आश्रित नहीं है, केवल ग्रहोंके बाह्य निमित्तोंको देखकर फल बताया गया है। इस कालमें भौम, दिव्य, और अन्तरिक्ष, इन तीन प्रकारके निमित्तोंका विशेष रूपसे वर्णन किया है । यथादिव्यान्तरिक्ष भौमं तु त्रिविधं परिकीर्तितम् । -अद्भुतसागर, पृ० ६ वराहीसंहितामें इन तीनों निमित्तोंके सम्बन्धमें लिखा है कि "भीमं चिरस्थिरभवं तच्छान्तिभिराहतं शममुपैति । नाभसमुपैति मृदुतां रक्षति न दिव्यं वदन्त्येके ।" इसी प्रकार आचार्य ऋषिपुत्रने "जे दिट्ठभुविरसरण जे दिट्ठा कुहमेणकत्ताणं । सदसंकुलेन दिट्ठा वऊसट्ठिय ऐण णाणधिया ॥"-इत्यादि वर्णन किया है । तात्पर्य यह है कि संहिताकालको इस प्रकारकी रचनाओंका समय ईस्वी सन् की ५ वीं और ६ वीं शताब्दी है, क्योंकि इस कालका संहिताका विषय ज्योतिष-शास्त्रकी मर्मज्ञताको दृष्टिसे अविकसित रूपमें है । हां, वराहमिहिरकी रचनाएँ अवश्य परिमार्जित हैं। वराहमिहिरसे पहलेकी रचनाएं संक्षिप्त सूत्ररूपमें लिखी गई थीं, पर ७ वीं शताब्दीसे इन ग्रन्थों पर टीकाएँ लिखना आरम्भ हुआ है तथा इस विषय को विस्तृत रचनाएँ भी प्रारम्भ हुई है। अतः ऋषिपुत्रका समय संहिताकालको शताब्दियोंमें है । इनकी रचनाको संक्षिप्तताको देखकर अनुमान होता है कि इनका समय वराहमिहिरसे पूर्व होना चाहिये। ___ आचार्य ऋषिपुत्रके नामसे अद्भुतसागरमें जो निम्न श्लोक आये हैं, उनसे इनके समय निर्णय पर और भी अधिक प्रकाश पड़ता है गर्गशिष्या यथा प्राहुस्तथा वक्ष्याम्यतः परम् । भौमभार्गवराह्वर्ककेतवो यायिनो ग्रहाः। आक्रन्दसारिणामिन्दुर्ये शेषा नागरास्तु ते। गुरुसौरबुधानेव नागरानाह देवलः ।। परान् धूमेन सहितान् राहुभार्गवलोहितान् ।
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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