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________________ ३२४ भारतीय संस्कृतिके विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान वाला एवं खल-प्रकृति का होता है । समस्त ग्रह लग्न, चतुर्थ, सप्तम और दशम भाव में स्थित हों तो कमल योग होता है। इस योगका जातक धनी, गुणी, दीर्घायु, यशस्वी, सुकृत करनेवाला, विजयी, मन्त्री या राज्यपाल होता है । कमल योग बहुत ही प्रभावक योग होता है । इस योग में जन्म लेनेवाला व्यक्ति शासनाधिकारी अवश्य बनता है । कानून शास्त्रका विशेषज्ञ होनेके कारण बड़े बड़े व्यक्ति उससे सलाह लेनेके लिए आते हैं । लग्नसे लगातार चार स्थानों में सब ग्रह हों तो यूपयोग होता है । इस योगवाला आत्मज्ञानी, धर्मात्मा, सुखी, बलवान, व्रत-नियमका पालन करनेवाला और विशिष्ट व्यक्तित्वसे युक्त होता है । यूप योग में उत्पन्न हुआ व्यक्ति पंचायती होता है और आपसी विवादों और झगड़ोंको निपटा देने में उसे अपूर्व सफलता प्राप्त होती है । चतुर्थ स्थानसे आगे चार स्थानोंमें ग्रह स्थित हों तो शर योग होता है । इस योगवाला व्यक्ति जेलका निरीक्षक, शिकारी, कुत्सित कर्म करनेवाला, पुलिस अधिकारी एवं नीच कर्मरत दुराचारी होता है। सप्तम भावसे आगेके चार भावों में समस्त ग्रह हों तो शक्ति योग होता है और दशम भावसे आगेके चार भावोंमें समस्त ग्रह हों तो दण्ड योग होता है । शक्ति योग मे जन्म लेनेवाला जातक धनहीन, निष्फल जीवन, दुखी, आलसी, दीर्घायु, दीर्घसूत्री, निर्दय और छोटा व्यापारी होता है । शक्ति योगमें जन्म लेनेवाला व्यक्ति नौकरी भी करता है पर उसे जीवन में कहीं भी सफलता नहीं मिलती । दण्ड योगमें जन्म लेनेवाला व्यक्ति नीच कर्म-रत होता है, पर संसारके कार्योंमें उसे सफलता मिलती है । यह उद्योग धन्धे कार्य नहीं कर सकता है, नौकरी ही इसके जीवनका पेशा होती है । लग्नसे लगातार सात स्थानों में सातों ग्रह हों तो नौका योग होता है । इस योगमें जन्म लेनेवाला व्यक्ति नौ सेनाका सैनिक, स्टीमर या जलीय जहाजका चालक, कप्तान, पनडुब्बी में प्रवीण और मोती, सीप आदि निकालने की कलामें कुशल होता है । नौका योगवाला जातक धनी होता है और जीवनमें दुर्घटनाओं का शिकार निरन्तर होता रहता है । चतुर्थ भावसे आगेके सात स्थानों में सभी ग्रह हों तो कूट योग और सप्तम भावसे आगेसे सात स्थानों में समस्त ग्रह हों तो छत्र योग होता है । कूट योग में जन्म लेनेवाला व्यक्ति जेल - कर्मचारी, धनहीन, शठ, क्रूर, इंजीनियर या अन्य किसी कला में प्रवीण होता है। छत्र योग वाला व्यक्ति धनिक, लोकप्रिय, राजकर्मचारी, उच्च पदाधिकारी, सेवक, परिवार के व्यक्तियोंका भरण-पोषण करनेवाला एवं अपने कार्य में ईमानदार होता है । ग्रह योगका यह विचार किसी स्थान विशेषसे आगे अथवा किसी स्थान विशेषपर ग्रहों के स्थित रहने से किया गया है। सभी ग्रह एक राशिमें स्थित हों, दो राशियों में स्थित हों, तीन राशियों में स्थित हों, चार राशियों में स्थित हों, पांच राशियोंमें स्थित हों, छः राशियों में स्थित हों और सात राशियों में स्थित हों तो क्रमशः गोल-योग, युग-योग, शूल-योग, केदारयोग, पाश-योग, दाम-योग एवं वीणायोग होते हैं । इन योगोंका विचार बहुत ही विस्तारपूर्वक किया गया है । ग्रहयुति ग्रहयुतिके अन्तर्गत द्विसंयोगी, त्रिसंयोगी, चतुःसंयोगी आदि ग्रहोंके फल बतलाए हैं । रवि-चन्द्र, रवि- मंगल, रवि-बुध, रवि- गुरु, रवि-शुक्र, और रवि-शनिकी युतियोंके साथ चन्द्र
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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