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________________ ज्योतिष एवं गणित ११३ मनुष्यके विचारका प्रभाव शरीरके साथ उसकी चेतन शक्तियोंपर भी पड़ता है। इतना ही नहीं उसके विचारसे गृह, कार्यालय, व्यवसाय, शिक्षालय भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहते हैं। अतएव प्रथम रूपके प्रतीक बृहस्पतिसे निम्नलिखित तथ्योंकी जानकारी प्राप्त करनी चाहिए। अनात्मा-इस दृष्टि बिन्दुसे बृहस्पति व्यापार कार्य, वे स्थान और व्यक्ति, जिनका सम्बन्ध धर्म और कानून से है --मन्दिर, पुजारी, मन्त्री, न्यायालय, न्यायाधीश, विश्वविद्यालय, धारासभाएं, जनताके उत्सव, दान, सहानुभूति आदिका प्रतिनिधित्व करता है। अतएव जातकशास्त्रमें सामान्यतः बृहस्पतिसे उक्ततथ्योंका विचार किया जाता है। आत्मा-इस दृष्टिकोण से यह ग्रह विचार मनोभाव और इन दोनोंके मिश्रित रूप उदारता, स्वभाव, सौन्दर्य-प्रेम, शक्ति, भक्ति एवं व्यवस्था-बुद्धि इत्यादि आत्मिक भावोंका प्रतिनिधित्व करता है। शारीरिक दृष्टिसे बृहस्पतिका प्रभाव पैर, जंघा, जिगर, पाचन क्रिया, रक्त, स्नायुसंस्थान आदिका विचार किया जाता है। सामान्यतः जठराग्निका विचार भी गुरु द्वारा होता है। बाह्य व्यक्तित्वके द्वितीय रूपका प्रतीक मंगल है। यह इन्द्रिय ज्ञान और आनन्द इच्छाका प्रतिनिधित्व करता है। जितने भी उत्तेजक और संवेदना जन्य आवेग हैं उनका यह प्रधान केन्द्र है । बाह्य आनन्ददायक वस्तुओं के द्वारा यह क्रियाशील होता है और आनन्ददायक अनुभवोंकी स्मृतियोंको जागृत करता है। वांछित वस्तुओंकी प्राप्ति तथा उन वस्तुओं की प्राप्तिके उपायोंके कारणोंको क्रियाका सूचक है। प्रधान रूपसे मंगलको इच्छाओंका प्रतीक माना गया है। ___अनात्मिक दृष्टिकोणसे यह सैनिक, डाक्टर, रसायनशास्त्री, नाई, बढ़ई, लोहार, मशीनका कार्य करनेवाले, मशीन बनानेवाले राज और मजदूर, खेल एवं खेलके सामान आदि का प्रतिनिधि है। ___आत्मिक दृष्टिकोणसे यह बहादुरी, दृढ़ता, आत्म विश्वास, क्रोष, युध-वृत्ति एवं प्रभुत्व प्रभृति भावों और विचारोंका प्रतिनिधि है। शारीरिक दृष्टिकोणसे यह बाहरी सिर--खोपड़ी, नाक, एवं कपोलका प्रतीक है। इसके द्वारा संक्रामक रोग, घाव, खरोंच, आप्रेशन, रक्त दोष, उदर-पीड़ा आदि अभिव्यक्त होते हैं। बाह्य व्यक्तित्वके तृतीय रूपका प्रतीक चन्द्रमा है। यह मानवपर शारीरिक प्रभाव मलता है और विभिन्न अंगों तथा उनके कार्यों में सुधार करता है। मानसिक विकास और चरित्रगत विशेषताओंको सूचना भी इसीके द्वारा प्राप्त होती है। अनास्मिक दृष्टिकोणकी अपेक्षासे यह श्वेत रंग, जहाज, बन्दरगाह, मछली, जल, तरल पदार्थ, मुक्ता, पाषाण, नर्स, दासी, भोजन, रजत एवं बैगली रंगके पदार्थों पर प्रभाव मलता है। बात्मिक दृष्टिकोगकी अपेक्षासे यह संवेदन, आन्तरिक इच्छा, उतावलापन, भावना, विशेषतः गृह-जीवन सम्बन्धी भावना, कल्पना, सतर्कता एवं लाम इच्छापर प्रभाव सकता है।
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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