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________________ जैन पञ्चांग जैन पञ्चांगकी प्रणाली बहुत प्राचीन है। जिस समय भारतवर्षमें ज्योतिषके गणित सम्बन्धी ग्रन्थोंका प्रचार विशेष रूपसे नहीं हुआ था, उस समय भी जैन ज्योतिष बहुत पल्लवित और पुष्पित था। तिथि, वार, नक्षक्ष, योग और करण इन पांचोंका ही नाम पञ्चाङ्ग है । इनकी प्रक्रिया जैसी जैन गणित-ज्योतिषके ग्रन्थों में है वैसी अन्यत्र एकाध ग्रन्थमें ही देखनेको मिलेगी। तिथि-सूर्य और चन्द्रमाके अन्तराशोंसे तिथि बनती है, और इनका मान १२ अंशोंके बराबर होता है। क्योंकि सूर्य और चन्द्रमा अपनी गतिसे गमन करते हुए ३० दिनमें ३६० अंशोंसे अन्तरित होते हैं । मध्यम मानसे तिथिका मान १२ अंश अर्थात ६० घटी अथवा ३० मुहूर्त होता है। नक्षत्र-प्रत्येक ग्रहका भिन्न-भिन्न नक्षत्र मान होता है। किन्तु पञ्चाङ्गके लिये चन्द्र नक्षत्रको ही लिया जाता है । इसीको दैनिक नक्षत्र भी कहते हैं । जैन आचार्योंने गगन-खण्ड मानकर प्रत्येक ग्रहके नक्षत्रका साधन सुगम रीतिसे किया है। जैन आचार्योंकी मान्यतासे सूर्य नक्षत्रका मध्यम मान १४ दिनसे अधिक और १५ दिनसे कम आता है। बुध गुरु आदिके नक्षत्रोंका मान तो मध्यम रीतिसे १३ दिनके लगभग आता है । योग-यह सूर्य और चन्द्रमाके योगसे पैदा होता है । प्राचीन जैन ग्रन्थमें मुहूर्त आदि के लिये इसको प्रधान अङ्ग दिया गया है। व्यतीपात, परिघ, गण्ड-इनका त्याग तो प्रत्येक शुभकार्यमें कहा गया है। गणित-शास्त्रकी रीतिसे सूर्य चन्द्रमाके दैनिक गगन-खण्डके योगमें ८०० का भाग देनेसे लब्ध घटिकादि रूप योग आता है। करण-यह तिथिका आधा भाग होता है । कुल ११ करण होते हैं, जिनमेंसे ७ करण चर संज्ञक है, और शेष चार करण स्थिति संज्ञक हैं जो निश्चित तिथियोंमें ही आते हैं। परन्तु चर संज्ञक करणोंमेंसे एक करण पूर्वार्ध तिथिमें और दूसरा उत्तरार्द्ध में आता है। जैन पञ्चाङ्गमें युगका मान ५ वर्ष लिया गया है। इसी पञ्चवर्षात्मक युगपरसे चन्द्रनक्षत्र एवं सूर्यादि नक्षत्र, योग आदिका साधन किया है। इस युगका आरम्भ अभिजित् नक्षत्रसे होता है । एक चान्द्र वर्ष में ३५४ दिन ५५३ मुहूर्त होते हैं, और एक युगसे ६० सौर मास, ६१ सावन मास, ६२ चान्द्र मास और ६७ नाक्षत्र मास होते हैं । एक नाक्षत्र वर्ष = ३२७५१ दिन एक चान्द्र वर्ष = ३५४१३ दिन एक सावन वर्ष = ३६० दिन एक सौर वर्ष = ३६६ दिन अधिकमास सहित एक चान्द्र वर्ष = ३८३ दिन २११६ मु० । एक ५ वर्षीय युगमें चन्द्रमा अभिजित् नक्षत्रका भोग ६७ बार करता है, ये ही ६७ चन्द्रमाके भगण कहलाते हैं । अतः पंचवर्षीय एक युगके दिनादिका मान इस प्रकार होगा :
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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