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________________ ज्योतिष एवं गणित २६३ यह प्रधान केन्द्र है । बाह्य आनन्ददायक वस्तुओंके द्वारा यह क्रियाशील होता है और पूर्वकी आनन्ददायक अनुभवोंकी स्मृतियोंको जागृत करता है । वांछित वस्तुकी प्राप्ति तथा उन वस्तुओंकी प्राप्ति के उपायोंके कारणोंकी क्रियाका प्रधान उद्गम है । यह प्रधान रूपसे इच्छाओंका प्रतीक है । अनात्मिक दृष्टिकोण से यह सैनिक, डाक्टर, रसायनशास्त्रवेत्ता, नापित, बढ़ई, लुहार, मशीनका कार्य करनेवाला, मकान बनानेवाला, खेल एवं खेलोंके सामान आदिका भी प्रतिनिधि है । शारीरिक दृष्टिकोणसे बाहरी सिर- खोपड़ी, नाक एवं गालका प्रतीक है । इसके द्वारा संक्रामक रोग, धाव, खरोंच, ऑपरेशन, रक्तदोष, दर्द, उदरपीड़ा आदिका भी विचार किया जाता है । आत्मविश्वास, क्रोध, युद्धवृत्ति एवं प्रभुता आदिका भी प्रतिनिधि है । दर्शन मोहनीय उपशम, क्षय या क्षयोपशमका प्रतीक शनि है । यह समस्त ग्रहों में विशेष महत्त्वपूर्ण है । मानव प्राणी सांसारिक विषयभोगोंमें आसक्त हो, आधिभौतिक और आधिदैविक साधनों से त्रस्त हो जब वह आत्माकी ओर उन्मुख होता दो दर्शन मोहनीय कर्मके प्रतीक शनिका फलादेश माना जाता है । इस ग्रहकी दशा, महादशा, अन्तर्दशा आदिमें क्लेश, दुःख एवं विपत्तियाँ प्राप्त होती हैं । अतः दर्शन मोहनीयके प्रतीक शनिद्वारा बाह्य और आन्तरिक चेतनाका परिज्ञान प्राप्त किया जाता है । प्रत्येक नवजीवन में आन्तरिक व्यक्तित्वसे जो कुछ प्राप्त होता है और जो मनुष्यके व्यक्तिगत जीवनसे मिलता है, उससे यह मनुष्यको वृद्धिगत करता है । यह प्रधान रूपसे अहम् भावनाका प्रतीक होता हुआ भी व्यक्तिगत जीवनके विचार, इच्छा और कार्योंके सन्तुलनका प्रतिनिधि है । विभिन्न प्रतीक - ग्रहोंके संयोगों द्वारा नाना तरहसे जीवन के रहस्योंको अभिव्यक्त करता है । उच्च स्थानका शनि सम्यक्त्वका सूचक है । अनात्मिक दृष्टिकोण से कृषक, हलवाहक, पत्रवाहक, चरवाहा, कुम्हार, माली, मठाधीश, पुलिस ऑफिसर, उपवास करनेवाले साधु-संन्यासी आदिका प्रतिनिधि है । आत्मिक दृष्टिसे तत्त्वज्ञान, विचारस्वातन्त्र्य, नायकत्व, मननशीलता, कार्यपरायणता, आत्मसंयम, धैर्य, दृढ़ता, गम्भीरता, आत्मचिन्तन, सतर्कता, विचारशीलता एवं कार्यशीलताका प्रतीक है । शारीरिक दृष्टिसे हड्डियाँ, नीचेके दाँत, बड़ी आंतें एवं मांसपेशियोंपर प्रभाव डालता है । चारित्र मोहनीयके उपशम, क्षय, या क्षयोपशमका सूचक राहु है । यह विचारशक्ति और क्रियाशक्तिका भी द्योतक है । जिस व्यक्तिपर राहुका पूर्ण प्रभाव रहता है, वह व्यक्ति संसार त्यागी बनता है अथवा घरमें उदासीन रूपसे निवास करता है । भक्तियोग, असम्प्रज्ञात समाधि, अनासक्त योग, ध्यानावस्था, आत्मानुभूति आदिका प्रतिनिधि भी इसे माना गया है । इसके द्वारा आजीविका, व्यवसाय, विद्याध्ययन, विदेशगमन आदिका विचार किया जाता है । आयुकर्मोदयका प्रतीक चन्द्रमा है । चन्द्रमाके द्वारा मनुष्यकी आयु, अरिष्ट, मानसिक क्षमता, आन्तरिक शक्ति आदिका ज्ञान किया जाता है। शरीरपर इसका प्रभाव विशेष रूपसे पड़ता है । यह अनात्मिक दृष्टिकोणकी अपेक्षासे श्वेतरंग, जलपान, बन्दरगाह, मत्स्य, जल, तरलपदार्थ, नर्स, दासी, भोजन, रजत एवं बैगनी रंग के पदार्थोंपर प्रभाव डालता है । कल्पना, आत्मिक दृष्टिकोणकी अपेक्षासे यह संवेदन, आन्तरिक इच्छा, उतावलापन, भावना, सतर्कता एवं लाभेच्छापर प्रभाव डालता है। शारीरिक दृष्टिकोणकी अपेक्षासे इसका
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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