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________________ २४८ भारतीय संस्कृतिके विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान साँचें सुखसों विमुख होत हो, भ्रम मदिरा मतवारो। चेतहु चेत सुनहु रे भइया, आप ही आप सँभारो॥ कवि भूधरदासने विहाग रागमें मनकी दुर्बलता तथा अहं और इदंके संघर्षसे उत्पन्न वासनाका नियन्त्रण करते हुए चारित्रकी शोधशालामें नैतिक मन और नैतिक बुद्धिकी आवश्यकताका निरूपण किया है जगत जन जुवा हारि चले ॥ काम-कुटिल संग बाजी माँड़ी, उन करि कपट छले ।। चार कषायमयी जहँ चौपरि पांसे जोग रले । इन सरबस उत कामनिकौंड़ी इहविधि झटक चले ॥ भैया भगवतीदासने सारंग, रामकली, जंगला, मल्हार, गौरी, बृन्दावनी सारंग, धनाश्री, आसावरी, विलावल, भैरव, आदि रागोंमें पदों की रचना की है। जगजीवन कविने मल्हार, रामकली, विलावल, सिन्दूरिया, कन्नड़ो, सारंग आदि रागोंमें पद लिखे हैं । जगत्रामने सोरठ, रामकली, ललित, कन्नड़ो, विलावल, ईमन, सिन्दूरिया, जंगला, मल्हार, जौनपुरी आदि रागोंमें पदोंकी रचना की है । द्यानतरायने मल्हार, जंगला, सारंग, आसावरी, गौरी, माढ़, श्यामकल्याण, विहागड़ी, सोरठ, भैरव, कन्नड़ो, रामकली, सोहनी, उझाज जोगी रासा, विहाग, सोरठ, भैरवी, और कान्हारो आदि रागोंका प्रयोग किया है। भूधरदासने सोरठ, ख्याल, माढ़, मल्हार, विहाग, विलावल, भैरवी, आसावरी, पीलू, होरी, विहागड़ो रागोंमें पदोंकी रचना की है । बस्तरामने पूर्वी, ललित, धनाश्री, नट, झंझोटी, गौड़ी, खमाच, रामकली, आसावरी, भूपाली, परज, भैरव आदि रागोंमें पद रचे हैं। नवलरामने विलावल, सोरठ, कान्हरो, होली, देवगन्धार, मांड, कन्नड़ी, सारंग और ईमनका प्रयोग किया है । बुधजनने कानडी, माढ़, आसावरी, सारंग, भैरवी, रामकली, जंगला, झंझोटी, विहाग, सोरठ, विलावल आदि रागोंमें पद रचा है। दौलतरामने रवा, सारंग, गौरी, मालकोष, भैरवी, मांढ, जंगलो, टोड़ी, उझाज जोगीरासा, सोरठ, होरी आदि रागोंमें पद लिखे हैं । इसी प्रकार कवि छत्रपति और महाचन्दने भी विभिन्न रागोंका प्रयोग कर पदोंकी रचना की है । १९वीं शताब्दीमें भागचन्दने बसन्त, मल्हार, सारंग और विलावल रागोंमें अनेक पद लिखे हैं । कवि नयनानन्दने विभिन्न रागोंमें नयनसुख विलासकी रचना की है। इन्होंने अपना परिचय देते हुए लिखा है कि कान्धला नगर में भूधरदासजीके अनुग्रहसे अध्यात्म ज्ञान प्राप्त हुआ । कवि नयनानन्दके ये भूधरदास ही विद्यागुरु भी थे। भूधरदासको मृत्युके पश्चात् कुछ दिनों तक नयनानन्दने कान्धलामें निवास किया पश्चात् वागप्रस्थ नगरके जैन पञ्चोंका पत्र प्राप्त कर वह वागप्रस्थ चले गये । वहाँपर उनका साक्षात्कार अध्यात्म प्रेमी निश्चल रायसे हुआ । निश्चल रायने बताया कि इस नगरमें सेठ शादीराम और उनका भांजा सगुणचन्द जैनियोंमें प्रधान हैं । सगुणचन्दके पुत्रका नाम चन्दनलाल है । कुसंगतिमें रहनेके कारण चन्दनलालको जैनधर्मके प्रति आस्था नहीं है। अतएव आप चन्दनलाल और उसके साथ तीन-चार लड़कोंको शिक्षा दीजिये। आपके इस कार्यसे धर्मका बड़ा उपकार होगा। पंचोंके समक्ष चार अन्य छात्रों के साथ चन्दनलालको धार्मिक शिक्षा प्रारम्भ हुई, पर चन्दनलाल पढ़ न सका ।
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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