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________________ २४४ भारतीय संस्कृति के विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान तहि कालि विविह हय पवरतूर, भविया यण-जण-मण- आस -पूर | केहिमि आऊरियधवल संख, पडु पडह घंट हयतह असंख । केहिमि अप्फालिय महुर- सद्द, ददुरउ भेरि काहल भउछ । केहिंमि उव्वेलिउ भरह· सत्थु णव रसहिं अट्ठ-भावहिं महत्थु । केहिमि आलाविउ वीण-वाउ, आढत्तु गेउ सूसरु ससउ । केहिमि उग्घोसिउ चउपयारु, मंगलु पवित्तु तइलोय -सारु । केहि मिकिय सत्थियवरचउक्क, बहुकुसुम-दाम-गयण-यल-मुक्क । केहिमि सुरेहिं आलविवि गेउ, णच्चिउ असेसु जम्माहिसेउ' । ar कवि वीरता वृद्धि करने वाले वाद्य और गीत ध्वनिका सुन्दर चित्रण किया है । युद्ध वाद्यों को सुनकर कायर व्यक्ति भी शूरवीर हो जाते थे और उनके हृदयमें भी वीरताकी लहर उत्पन्न हो जाती थी । इस ग्रंथमें पटह, तरड, मरदल, वेणु, वीणा, कंसाल, तूर्य, मृदङ्ग, दुन्दुभी, घण्टा, झालर, कालह, किरिरि, ढक्का, डमरू, तक्खा, खुन्द, तटखुन्द आदि वाद्योंके नाम आये हैं। इन वाद्योंकी ध्वनियोंका निर्देश भी पंचम सन्धिमें किया गया है- पहय पडुपडह पडिरडिय दडिडंबरं, करडतडतड - तडिवडण फुरियंवरं । घुमुषुमुक्क घुमुधुमियमद्दलवर; सालकंसालसलसलिय - सुललियसरं । डक्कडमडक्क - डमडमियडमरुब्भडं; घंट- जयघंट- टंकाररहसियभउं । ढक्कत्रं त्रं हुडुक्कावलीनाइयं, रुंज गुंजंत - संदिण्णसमघाइयं । थगगदुग-थगगदुग-थगगदुग सज्जियं, किरिरिकिरि-तट्टकिरिकिरिरि किरवज्जियं । तखिखितखि-तक्खि-तखितत्तासुन्दरं, तदिदिखुदि- खुदखुद खुद भाभासुरं । थिरिरि-कटतट्टकट थिरिरिकट नाडियं, किरिरि तटसुखं तटकिरिरि-तडताडियं । पहय-समहत्य-सुपसत्यवित्थारियं, मंगलं नंदिघोसं मनोहारियं । तूरसद्देण चलियं महाकलयलं, रायराएण सह चाउरंगं बलं । ९. वही, पृ० -- ६७, संधि - ८ १८ । २ . वही ४१९ ।
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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