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________________ २४२ भारतीय संस्कृतिके विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान ___ इसके अनन्तर बताया है कि गोतको योनि क्या है ? कितने उश्वास होते हैं और गीतमें कितने आगार हैं तथा सप्त स्वरोंका स्थान क्या है ? गीतके गुण और दोष भी बतलाये गये हैं । छह दोषों और आठ गुणोंका कथन करते हुए लिखा है भीयं दुअं उप्पिच्छं, उत्तालं च कमसो मुणेअव्वं । कगस्सर मणुणासं छद्दोसा होंति गेअस्स ॥ पुण्णं रत्तं च अलंकि, च वत्तं च तहेवमविघुटुं । महुरं समं सुललिअं अट्ठगुणा होति गेअस्स' ॥ भीत, द्रुत, उत्क्षिप्त, उत्ताल, काक स्वर और चित्त चञ्चलता ये छह दोष गीतके हैं । पूर्ण, रक्त, अलंकृत, वृत्त, अवधुट्टित, मधुर, सम और सुललित ये आठ गुण गीत के हैं। __उर, कण्ठ, सिर, विशुद्ध, मृदु, रिभित, पदबद्ध, समताल द्वारा वाद्य ध्वनिका क्षेपण इस प्रकार सप्तस्वर रसभरित गीत होता है। अक्षरसम, पदसम, तालसम, लयसम, गेय, गेहसम, उश्वास-निःश्वास सम और संचार सम ये सात स्वर भी गीतके बतलाये गये हैं । निर्दोष, सारयुक्त, हेतुयुक्त, अलंकृत, उपनीति, सोपकार, मृदु, मधुर और मधुर ये गुण भी गीत में रहने चाहिये । इसी सूत्रके विवेचनमें संगीतके तत्त्वोंका उपसंहार करते हुए लिखा है सत्त सरा तओ गामा, मुच्छणा इक्कवीसइ । ताणा एगणपण्णासं, सम्मत्तं सरमंडलं ॥ अर्थात् सप्तस्वर, तीन ग्राम, २१ मूच्छनाएँ और ४९ तान स्वर मंडलमें होती हैं । इस प्रकार आगम सूत्रोंमें संगीतके सिद्धान्त निबद्ध मिलते हैं । आगमोत्तर साहित्यमें वसुदेवहिण्डी, पउमचरियं, समराइच्चकहा, कुवलयमाला आदि ग्रन्थोंमें भी संगीतके सिद्धान्त निहित हैं । वसुदेवहिण्डोमें वसुदेव, यशोभद्रा, गन्धर्वसेना आदिके आख्यानोंमें गीत, वाद्य और नृत्यका कथन आया है। आख्यानोंको प्रभावोत्पादक बनानेके लिए नृत्य, अभिनय, गीत आदिकी पर्याप्त योजना की गयी है। वसुदेवहिण्डीके आख्यानोंसे यह स्पष्ट है कि गीत, वाद्य, नृत्य, उदक वाद्य, वीणा, डमरू आदिकी शिक्षा कन्याओंको दी जाती थी । वीणा, वंशी, दुन्दुभी, पटह आदि वाद्योंका विशेष प्रचार था। ___'पउमचरियं में कैकेयीकी शिक्षाके अन्तर्गत नाट्य और संगीतको विशेष स्थान दिया है। लिखा है नर्से सलक्खणगुणं, गन्धव्वं सरविहत्तिसंजुत्तं । जाणइ आहरणविही, चउव्विहं चेव सविसेसं ।। १. अनुयोगद्वार, व्यावर संस्करण, सूत्र १२७ २. वही, सूत्र १२७ ३. पउमचरियं, प्राकृत टेक्स्ट सोसाइटी सीरीज, वाराणसी, डा० एच० जैकोबी द्वारा सम्पा. दित सन् १९६२ ई० पृष्ठ-२१३ पद्य संख्या-५ ।
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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