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________________ जैन तीर्थ, इतिहास, कला, संस्कृति एवं राजनीति १८९ थे, पीछे किसी कारणवश वैदिक या बौद्ध धर्मका पालन करने लगे । ऐसे राजाओंके सिक्कोंमें कई प्रकारको धर्म भावनाएँ मिलती हैं । जब तक ये वैदिक धर्म या बौद्धधर्मका पालन करते रहे, उस समय तककी मुद्राओंमें इन्होंने वैदिक या बौद्धधर्मको भावनाको व्यक्त किया है । जैन धर्मानुयायी बन जानेपर उत्तरकालीन मुद्राओंमें जैनधर्मकी भावनाओंको प्रतीकों द्वारा प्रकट किया है । इसी प्रकार जो प्रारम्भमें जैन थे, उन्होंने उस समयमें चलाई मुद्राओंमें जैन भावना और उत्तरकालमें धर्म परिवर्तन कर लेनेपर उस परिवत्तित धर्मकी भावनाको व्यक्त किया है। उन विदेशी सिक्काओंमें भी जैनधर्म के प्रतीक मिलते हैं, जिन देशोंमें जैनधर्मके प्रचारकोंने वहाँ के राजाओंको अपने धर्म में दीक्षित कर लिया था। भारतमें अब तक प्राप्त सिक्कोंमें लीडिया देशके सोने और चाँदोसे मिश्रित श्वेत धातुके सिक्के सबसे प्राचीन हैं । इन सिक्कोंको भारतमें माल खरीदनेके लिए वहाँ वाले यहाँ लाये थे। कई वर्ष हुए पंजाबके वन्नू जिलेमें सिन्धु नदीके पश्चिमी तटपर लीडियाके राजा क्रीससका सोनेका एक सिक्का मिला है । रंगपुर जिलेके सद्यः पुष्पकारिणी नामक गाँवके प्रसिद्ध जमीदार श्रीयुत् मृत्युञ्जय राय चौधरीने यह सिक्का खरीद लिया है। इस सिक्के में एक ओर वृषभ और एक सिंहका मुँह बना है, तथा दूसरी ओर एक छोटा और एक बड़ा पंचमार्क चिह्न अंकित है। उपर्युक्त सिक्के में अंकित प्रतीक वृषभ और सिंहका सम्बंध जैनधर्मको धार्मिक भावनासे है; क्योंकि सिक्का निर्माताने अपने प्रिय धर्मके इस युगीन प्रथम तीर्थंकर भगवान् ऋषभनाथके चिह्न वृषभ (साँड) तथा अंतिम तीर्थंकर भगवान् महावीरकी अभिव्यक्ति की है । जैन ग्रंथोंसे विदित भी होता है कि यूनान, रोम, मिस्र , ब्रह्मा, श्याम, अफ्रीका, सुमात्रा, जावा, बोनियों आदि देशोंमें जैनधर्मका प्रचार ईस्वी सन्से कई शताब्दी पहले ही वर्तमान था। अतएव क्रीससका अहिंसा धर्म पालक होना असम्भव नहीं है। रैप्सनने अपने 'भारतीय सिक्के' नामक ग्रन्थ और रायल एशियाटिक सोसायटीकी पत्रिकाके अनेक निबन्धोंमें भारतीय यूनानी राजाओंके सिक्कोंका विवरण उपस्थित किया है । 1. According to Iterodotus the Earliest Stamped money was made by the Lydians-Coins of Ancient-India, p. 3. The Earliest Coinage, of the ancient world would apeal chiefty to have been of silver and electrum; The latter metal being conbined to Asia Minar, and the former to areece and India. Some of the Lydian staters of pale gerd may be old as Gyges. Ibid, P. 19. Notes on 'India Coins and seals. Journal of the Royal Aciatic society, 1900-5, Coins of the Greco-Indian Sovercigns, Agathocleia and strato, soter and strato 11 Philopatar. Numismatic Notes ano Novelties, Journal of the aciatic Society of Bengal-old series, 1, 1890. 2 Notes
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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