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________________ भारतीय संस्कृतिके विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान सदीमें दक्षिण भारतमें जनकलाका जो आकार-प्रकार प्रचलित था, वह उत्तरकी ओर बढ़ा और साथ ही द्राविड़ चिन्होंको भी लेता गया । जैन-वास्तु-कला सौन्दर्यके साथ-साथ उपासनाका मूत्तिमान रूप है। जैन स्तूप और स्तम्भ-जन वास्तुकलामें स्तूपोंका स्थान भी श्रेष्ठ है । स्तूप केबल धार्मिक चिह्न ही नहीं थे, बल्कि सिद्ध परमेष्ठीके प्रतीक होनेसे पूज्य थे । स्तूप रचनाकी प्रणाली जैनियोंमें मौर्य सम्राट अशोकसे भी पहले प्रचलित थी। मण्डप स्तम्भ द्राविड कलामें जैनोंकी अपनी पृथक् वस्तु हैं । ये मण्डप पांच स्तम्भोंके होते थे। चारों कोनोंके साथ-साथ बीचमें भी एक स्तम्भ रहता था। यह बीचका स्तम्भ कलाकी दृष्टिसे बहुत ही सुन्दर बनाया जाता था। फसनने इस मण्डप स्तम्भकी बड़ी प्रशंसा की है । मण्डप स्तम्भोंके अतिरिक्त सामान्य स्तम्भ दो प्रकारके बैनियोंमें प्रचलित-मानस्तम्भ और ब्रह्मदेव स्तम्भ । मानस्तम्भमें ऊपर चोटीपर एक छोटी सी बेदी रहती है जिसमें चतुर्मुख प्रतिमा विराजमान रहती है। ब्रह्मदेव स्तम्भमें बोटीपर ब्रह्मकी पूर्ति स्थापित की जाती है । यह स्तम्भ एक समूचे पाषाणका होता है और इसके निचले भागमें नक्काशीका काम किया रहता है । ऐहोले, इलोरा आदि स्थानों पर सुन्दर मानस्तम्भ वर्तमान थे । इलोरा की इन्द्रसभाके सम्मुख बना हुआ मानस्तम्भ वास्तुकलाको दृष्टिसे अपूर्व है। श्रीबेलहौस सा० ने मानस्तम्भोंकी प्रशंसा करते हुए लिखा है कि "जैन स्तम्भोंकी आधारशिला और शिखर बारीक और सुन्दर समलंकृत शिल्पचातुर्ग की आश्चर्य वस्तु हैं । इन सुन्दर स्तम्भोंकी राजसी प्रभासे कोई भी वस्तु मुकाबिला नहीं कर सकती है। ये प्राकृत सौन्दर्यके अनुरूप ही पूर्ण और पर्याप्त बनाये गये हैं । इनकी नक्काशी और महत्ता सर्वप्रिय है।" ___राजनृपने काल्पोले नामक स्थानमें अद्वितीय जिनमन्दिर बनवाया था जिसकी तीन शिखरें थीं। उसने शासकोंके विश्रामगृहके लिये एक सोनेकी शिखरवाला मन्दिर तथा उसके सामने मानस्तम्भ बनाया था। ये सभी मानस्तम्भ शिल्पकलाके अद्भुत नमूने थे, इनकी नक्काशी, लटकन और गुम्मनें अनूठे ढंग की बनी हुई थीं। ___ दक्षिणके अलावा उत्तर भारतमें भी आबू के जैन मन्दिर जैसे सुन्दर वास्तुकलाके नमूने बनाये गये थे। आबूके जैन मन्दिरों की प्रशंसा करते हुए कर्नल टॉडने अपनी ट्रेवल्स इन वेस्टर्न इण्डिया नामक पुस्तकमें लिखा है । "हिन्दुस्तान भरमें यह मन्दिर सर्वोत्तम है और राजमहलके सिवा कोई दूसरा स्थान इसकी समता नहीं कर सकता"। मिस्टर फर्ग्युसनने पिक्चर्स इलस्ट्रेशन आफ इन्नोसेण्ट आर्कीटेक्चर इन हिन्दुस्तान-नामक पुस्तक में लिखा है"इस मन्दिरमें, जो संगमरमरका बना हुआ है, अत्यन्त परिश्रम सहन करनेवाली हिन्दुओंकी टॉकी से फीते जैसी सूक्ष्मताके साथ ऐसी आकृतियाँ बनायी गयी हैं, जिनकी नकल कागजपर, बनानेमें कितने ही समय और परिश्रम कर भी मैं नहीं कर सकता हूँ"। ___ इस प्रकार जैन वास्तुकलाके नमूने एकसे एक बढ़कर समस्त भारतमें वर्तमान है। जैन इमारतोंके सौन्दर्यकी सूक्ष्मता, गुम्बज, तोरण, स्तम्भ, छत और गोखोंकी सूक्ष्म नक्काशी 1. Walhouse IA, P. 39
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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