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________________ जैन तीर्थ, इतिहास, कला, संस्कृति एवं राजनीति १२९ श्रद्धालु बताया है। इसने जिन मूर्ति एवं तालाब का निर्माण कराया था । मन्दिरों और मूर्तियोंकी प्रतिष्ठा कराने में जक्कियव्ये एवं सेनापति सूर्यदण्डनायककी पत्नी दावणगेरे भी प्रसिद्ध हैं । इन दोनों नारियोंने जैन शासनकी प्रभावनाके हेतु अनेक कार्य किये हैं । गंगवंशके राजा मारसिंहकी छोटी बहनके गुरु माघनन्दि थे । इस महिलाने जहाँ जैन मन्दिर नहीं थे वहाँ जैन मन्दिरोंका निर्माण कराया और जहाँ जैन मुनियोंको निवासका प्रबन्ध नहीं था वहाँ निवास स्थान बनवाये । होयसल नरेश विष्णुवर्धनकी रानी शान्तल देवी प्रभावनाके लिए प्रसिद्ध है । इसके गुरु प्रभाचन्द्र सिद्धान्तदेव थे । शान्तल देवीने जैनधर्मके लिए जो कुछ कार्य किये वे सब चिरस्थायी हैं । उसने श्रवणबेलगोलामें सन् ११२३ ई० में जिनेन्द्रकी मूर्तिकी स्थापना की और सवति गंधवारण बसदिका निर्माण कराया तथा राजा विष्णुवर्धनकी आज्ञासे प्रबन्धादिके लिए मोट्टेनविले गाँव प्रदान लिया । श्रवणबेलगोलाके एक अभिलेखमें शान्तल देवीके दानका स्मा वर्णित है । कहा जाता है कि विष्णुवर्धनकी पटरानी शान्तल देवीने जो पातिव्रत धर्म परायणता और भक्तिमें रुक्मिणी, सत्यभामा और सीताके समान थी, सवति गंधवारण बसदि का निर्माण कराकर अभिषेकके लिए एक तालाब बनवाया और उसके साथ एक ग्राम दान दिया । सन् १९३९ ई० में इसने सल्लेखनापूर्वक मरण किया ।" राजा विष्णुवर्धनकी पुत्री हरियब्बरसि जैन धर्मकी भक्त थी । सन् ११२९ ई० में हन्नियूरमें एक उत्तुंग जिनालयका निर्माण कराया और उसकी मरम्मत आदि के लिए भूमि प्रदान की । श्रवणबेलगोलाके १२४वें अभिलेख से ज्ञात होता है कि चन्द्रमौलि मन्त्रीकी पत्नी आचल देवीने श्रवणबेलगोला में एक जिनमन्दिरका निर्माण कराया था, उसे चन्द्रमौलिकी प्रार्थनासे होयसल नरेश वीर बल्लालने बम्मेयन हल्लि नामक ग्राम प्रदान किया था । जैन महिलाओं के इतिहासमें नागले भी उल्लेख योग्य विदुषी और धर्म सेविका महिला है । इसके पुत्रका नाम बूचराज या बूचड़ मिलता है । यह अपनी माताके स्नेहमय उपदेशके कारण शक संवत् १०३७ में वैशाख शुक्ला दशमी रविवारको सर्वपरिग्रहका त्यागकर स्वर्गवासी हुआ । इसकी धर्मात्मा पुत्री देमती या देवमती थी । यह आहार, औषधि, ज्ञान और अभय इन चारों प्रकारोंके दानोंको करती थी । इसने शक सं० १०४२, फाल्गुल कृष्ण एकादशी गुरुवारको संन्यास विधिसे शरीर त्याग किया था । दक्षिण भारत के अतिरिक्त उत्तर भारतमें भी कई जैन महिलाओंने जैन धर्मकी प्रभावना की है । सुप्रसिद्ध कवि आशाधरजीकी पत्नी पद्मावतीने बुलडाना जिलेके मेहंकर (मेघंकर) नामक ग्रामके बालाजी मन्दिर में जैन मूर्तियोंकी प्रतिष्ठा कराई थी । यह एक खण्डित मूर्तिके लेखसे सिद्ध होता है । राजपूताने की जैन महिलाओंमें पीरबाड़वंशी तेजपालकी भार्या सोहडा देवी, शीशोदिया वंश की रानी जयतल्लदेवी एवं जैन राजा आशा शाहकी माताका नाम विशेष उल्लेख योग्य है । १. जैन शिलालेख संग्रह प्रथम भाग, अभिलेख सं० ५३ और ५६ । १७
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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