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________________ जी ने अपना आचार्य पद विमलसागर जी महाराज (भिण्ड) को सन् 1973 में हाड़ौती जिले में दिया। आचार्य विमलसागर जी ने अनेक दीक्षाएं दी उनके शिष्यों में आचार्य सुमतिसागर जी, आचार्य निर्मल सागर जी, आचार्य कुन्थुसागर जी, मुनि ज्ञानसागर जी आदि अतिप्रसिद्ध हैं। आचार्य विमलसागर जी महाराज ने अपना आचार्य पद ब्र ईश्वरलाल जी के हाथ पत्रा द्वारा सुमतिसागर जी को दिया था। आचार्य विमलसागर जी महाराज का समाधिमरण 13 अप्रैल 1973 (वि•स• 2030) में सांगोद, जिला कोटा (राजस्थान) में हुआ था। आचार्य शान्तिसागर जी महाराज (छाणी) परम्परा के पांचवे आचार्य श्री सुमति सागर जी महाराज का जन्म वि.स. 1974 (सन् 1917) आसोज शुक्ला चतुर्थी को ग्राम श्यामपुरा जिला मुरैना (म.प्र.) में हुआ था। आपने ऐलक दीक्षा वि•स• 2025 चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को रेवाडी (हरियाणा) में मुनि दीक्षा वि.स. 2025 अगहन बदी द्वादशी (सन् 1968) में गाजियाबाद (उ.प्र.) में ग्रहण की। आचार्य सुमतिसागर जी कठोर तपस्वी और आर्षमार्गानुयायी थे। आपने अनेक कष्टों और आपदायों को सहने के बाद दिगम्बरी दीक्षा धारण की थी। आपके जीवन में अनेक उपसर्ग और चमत्कार हुए। पंडित मक्खनलाल जी मुरैना जैसे अद्भुत विद्वानों का संसर्ग आपको मिला। आप मासोपवासी कहे जाते थे। आपके उपदेश से अनेक आर्षमार्गानुयायी ग्रन्थों का प्रकाशन हुआ। सोनागिर स्थित त्यागी व्रती आश्रम आपकी कीर्तिपताका पफहरा रहा है। आपने शताधिक दीक्षाएं अब तक प्रदान की थी। आपके प्रसिद्ध शिष्यों में उपाध्याय श्री ज्ञानसागर जी महाराज प्रमुख है। ऐसे आचार्यों, उपाध्यायों, मुनिवरों, गुरुवरों को शत्-शत् नमन, शत्-शत् वन्दन। सन् 1957 ई. में मध्य प्रदेश के मुरैना शहर में उपाध्याय जी का जन्म हुआ था। इनके पिता का नाम श्री शान्तिलाल जी एवं माता का नाम श्रीमती अशर्फी है। इनके बचपन का नाम उमेश कुमार था। इनके दो भाई और बहने हैं। भाइयों का नाम श्री राकेश कुमार एवं प्रदीप कुमार है तथा बहनों के नाम सुश्री मीना एवं अनिता है। आपने 5.11.1976 को सिद्धक्षेत्र सोनागिर जी में आचार्य श्री सुमतिसागर जी महाराज से क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण की थी तथा आपको क्षुल्लक गुणसागर नाम मिला था। 12 वर्षों तक निर्दोष क्षुल्लक की चर्या पालने के बाद आपको आचार्य श्री सुमतिसागर जी महाराज ने 31.3.88 को सोनागिर सिद्धक्षेत्र में मुनि दीक्षा देकर श्री ज्ञानसागर जी महाराज नाम से अलंकृत किया। सरधना में 30-1-89 को आपको उपाध्याय पद प्रदान किया गया। उपाध्यायश्री के चरण-कमल जहां पड़ते हैं वहां जंगल में मंगल चरितार्थ हो जाता है। vii
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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