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________________ १०४ भारतीय संस्कृतिक विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान सभी वृत्तियाँ जागृतकर करुण, दया, क्षमा, सहानुभूति आदि कोमल वृत्तियोंके विकास पर जोर दिया है । यह रचना अत्यन्त सरल, सरस और सद्यः प्रभावोत्पादिनी है । (३) बकुण्डका ध्वंस जैन मन्दिर ग्वालियर से दक्षिण-पश्चिममें दुबकुण्ड नामक पुराना जैन मंदिर है। यह कुनू और चम्बल बीचमें ग्वालियरसे ७६ मील दक्षिण-पश्चिम और शिवपुरीसे ४४ मील उत्तर-पश्चिममें एक उपत्यकाके ऊपर स्थित है। ग्वालियरकी सड़कसे ९८ मील दूर है । श्री बा० ज्वालाप्रसाद, जो सन् १८६६ में कप्तान मेलविलके साथ उस स्थानका अवलोकन करने गये थे, उन्होंने वहाँ उत्कीर्ण एक लेखको पढ़कर मंदिरका निर्माण सं० ७४१ बताया; परन्तु कुछ पुरातत्त्वज्ञोंने उसका समय सं० १०८८ या ११४५ कहा है । क्योंकि अन्य उत्कीर्ण शिलालेखोंसे इस मतकी पुष्टि हो जाती है । यह समय श्री विक्रमसिंह महाराजाधिराजके कालमें पड़ता है | ग्वालियरके राजाओं की नामावलीमें इस नामके राजाका उल्लेख नहीं है, किन्तु ग्वालियरके युवराज 'कच्छप वंश घट तिलक' कहे जाते हैं, अत: इस कच्छवाह वंशी राजाका संबंध ग्वालियर से रहा होगा । दूबकुण्डका मंदिर ७५० फीट लम्बा और ४०० फीट चौड़ा अण्डाकार घेरेमें है । पूर्व की ओर प्रवेश द्वार है, द्वारके सामने पत्थरमें कटा हुआ ५० वर्गफीट का एक तालाब है । यह मंदिर बिल्कुल गिर गया है । इसके भीतर शिव-पार्वती के मंदिरका ध्वंसावशेष भी है । बेर और बबूल के पेड़ोंका जंगल इतना घना है कि समस्त मंदिरमें घूमना कठिन है । यहाँकी सभी मूर्तियाँ जैन हैं । एक मूर्तिपर चंद्रप्रभुका नाम भी लिखा हुआ है। किवदंती है कि यहाँ प्राचीन काल में जैनियों का मेला भी लगता था । प्राचीन समयमें पश्चिमके किसी राजाने आक्रमणकर यहाँके मंदिर को तोड़ दिया था, तथा अनेक मूर्तियोंको तालाब में डुबा दिया और सोने-चाँदीको मूर्तियों को वह • ले गया था। मूत्तियोंको डुबानेके कारण ही इस मंदिरका नाम डूबकुण्ड अर्थात् दूब कुण्ड पड़ गया है । प्रसिद्धि है कि दोवाशाह और भीमाशाह नामक जैन श्रावकोंने इस मंदिरको बनवाया था । किन्तु शिलालेखमें बताया गया है कि मुनि विजयकीत्तिके उपदेशसे जैसवाल वंशी दाह, कूकेक, सूर्पट, देवघर और महीचन्द्र आदि चतुर श्रावकोंने मंदिरका निर्माण कराया था जिसके पूजन, संरक्षण एवं जीर्णोद्धार आदिके लिए कच्छवाह राजा विक्रमसिंह ने भूमि दान भी दी थी। मराठा सरदार अमर सिंहने धर्मान्ध होकर जैन संस्कृतिके स्तम्भ इस मंदिर को नस्तनाबूद किया था। इस मंदिरके संबंध में कहा गया है 'The Jain temple o Dubkund is square enclosure of 81 feet each way; on each side there are ten rooms. The four corner rooms have doors opening outwards, but all the rest open inwards into a corridor, supported on only seven Chapels, there being exactly eight chapels on each of the other three sides. Each chapel is 5 feet 8 inches square." अर्थात् — जैन मंदिर ८१ फीटके घेरेमें है, इसमें चारों ओर दस कमरे हैं, चारों कोनोंके दरवाजे बाहर की ओर खुलते हैं, बाकी सभी दरवाजे भीतर बरामदेकी ओर सुलते हैं जो कि
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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