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________________ जैन तीर्थ, इतिहास,कला, संस्कृति एवं राजनीति मलयाचल पर्वत पर पहुँचा। यहाँसे वह सिंहलद्वीप गया, लौटते समय वह केरल आया था। द्रविड़ देशको उसने जैन मन्दिरों और जैन श्रावकोंसे पूर्ण देखा। अनन्तर वह कर्णाटक, काम्बोज, कांचीपुर, सह्यपर्वत, आभीर आदि देशोंमें भ्रमण करता हुआ किष्किन्धापुरमें आया । इस भ्रमण वृत्तान्तसे स्पष्ट है कि भद्रबाहु स्वामीके जानेके पहले दक्षिण प्रान्तमें जैनधर्म फल-फूल रहा था। यदि वहाँ जैनधर्म उन्नत अवस्थामें नहीं होता तो यह विशाल मुनिसंघ, जिसकी कि आजीविका जैन धर्मानुयायी श्रावकों पर ही आश्रित थी, विपत्तिके समय कभी भी दक्षिणको नहीं जाता । बुद्धि इस बातको कभी स्वीकार नहीं करती है कि भद्रबाहु स्वामी इतनी अधिक मुनियोंकी संख्याको बिना श्रावकोंके कैसे ले जानेका साहस कर सकते थे ? अतः श्रावक वहाँ विपुल परिमाणमें अवश्य पहलेसे वर्तमान थे। इसीलिये भद्रबाहु स्वामीने अपने विशाल संघको दक्षिण भारतकी ओर ले जानेका साहस किया। ___ भद्रबाहु स्वामीकी इस यात्राने दक्षिणभारतमें जैनधर्मके फलने और फूलनेका सुअवसर प्रदान किया। बौद्धोंकी जातक कथाओं और मेगास्थनीजके भ्रमणवृत्तान्तोंसे अवगत होता है कि उत्तरमें १२ वर्षका भयंकर दुर्भिक्ष पड़ा था और चन्द्र गुप्त मौर्य भी अपने पुत्र सिंहसेनको राजगद्दी देकर भद्रबाहुके साथ दक्षिणमें आत्मशोधनके लिये चला गया था। चन्द्रगिरि पर्वतपर चंद्रगुप्तकी द्वादश वर्षीय तपस्याका वर्णन मिलता है। भद्रबाहु स्वामीने अपनी आसन्न मृत्यु ज्ञातकर मार्ग में ही कहीं समाधिमरण धारण किया था। इनका मृत्युकाल दिगम्बर परम्परानुसार वीर नि० सं० १६२ और श्वेताम्बर सम्प्रदाय द्वारा वी० नि० १७० माना जाता है। दक्षिणमें पहुंचकर इस संघने वहाँ जैनधर्मका खूब प्रसार किया तथा जैन साहित्यका निर्माण भी विपुल परिमाणमें हुआ। इस धर्मके प्रचार और प्रसारकी दृष्टिसे दक्षिणभारतको दो भागोंमें विभक्त किया जा सकता है तामिल प्रान्त और कर्णाटक । तामिल प्रदेशमें चोल और पाण्ड्य नरेशोंमें जैनधर्म पहलेसे ही वर्तमान था, पर अब उनकी श्रद्धा और भी दृढ़ हो गयी तथा इन राजाओंने इस धर्मके प्रसारमें बड़ा सहयोग प्रदान किया। सम्राट एल खारवेलके एक शिलालेखसे पता चलता है कि उसके राज्याभिषेकके अवसर पर पाण्ड्य राजाओंने कई जहाज उपहार भेजे थे। ये सभी राजा जैन थे इसीलिये जैन सम्राटके अभिषेक के अवसर पर उन्होंने उपहार भेजे थे। इनकी राजधानी मदुरा जैनोंका प्रमुख प्रचार केन्द्र बन गयी थो। तामिल ग्रन्थ 'नालिदियर' के सम्बन्धमें किंवदन्ती है कि भद्रबाहु स्वामीके विशाल संघके आठ सहस्र जैन साधु पाण्ड्य देश गये थे, जब वे वहाँसे वापस आने लगे तो पाण्डय नरेशोंने उन्हें आने से रोका। एक दिन रातको चुपचाप इन साधुओंने राजधानी छोड़ दी; पर चलते समय प्रत्येक साधुने एक-एक ताड़पत्र पर एक-एक पद्य लिखकर रख दिया; इन्हीं पद्योंका संग्रह 'नालिदियर' कहलाता है । ___ तामिल साहित्यका वेद कुरलकाव्य माना जाता है, इसके रचयिता आचार्य कुन्दकुन्द हैं। इन्होंने असाम्प्रदायिक दृष्टिकोणसे इसे लिखा है, जिससे यह काव्य मानवमात्रके लिये अपने विकासमें सहायक है। जैनोंके तिरुकुरुल, नाल दियर, पछिमोछी, नानुछी, चिंतामणि, सीलप्पडिकारम्, वलणप्पदि आदि तामिल भाषाके काव्य विशेष सुन्दर माने जाते हैं।
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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