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________________ ८६ भारतीय संस्कृतिके विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान लिए निमन्त्रण दिया है। भोज और भोजन विधिका साङ्गोपाङ्ग चित्रण कथाकोष प्रकरणमें शालिभद्रको कथामें उपलब्ध होता है । राजा श्रेणिक अपनी रानी चेलनाके साथ सुभद्र सेठानीके घर चहुँचता है । भोजन मण्डपमें बैठनेपर सर्व प्रथम दाडिम, द्राक्षा, दंतसर, वेर, रायण आदि चर्वणीय पदार्थ उपस्थित किये गये । अनन्तर गन्नेकी गँडेरी, खजूर, नारंग, माम आदि चोष्य पदार्थ; तत्पश्चात् विभिन्न प्रकारके स्वादु लेह्य पदार्थ प्रस्तुत किये। अशोक, वट्टीरुक, सेवा, मोदक, फेणी, सुकुमारिका, घेवर आदि अनेक प्रकारके भोज्य पदार्थ परोसे गये । इसके पश्चात् सुगन्धित चावल, विरंज लाये गये । पुनः अनेक प्रकारके द्रव्योंसे बनायी कढ़ी लायी गयी। इसके पश्चात् दधि निर्मित भोज्य पदार्थ उपस्थित किये । सबके अन्त में केसर, शक्कर, और घृत मिश्रित आधा औंटा हुआ दूध दिया गया। ताम्बूल, सुपाड़ी, केसर आदि सुगन्धित पदार्थ भोजनोत्तर ग्रहण किये जाते थे। __जंबूसामिचरिउसे भी भोजन-पान पर प्रकाश पड़ता है। बताया गया है कि मीठे, खट्टे एवं चरपरे व्यंजनोंका प्रयोग किया जाता था। विवाह या अन्य उत्सवोंके अवसर पर सामूहिक भोज तृणासनों पर बैठकर सम्पन्न होता था। कूर नामक (धानके) चावलसे निर्मित भात घृतसे सिक्त किया जाता था। दधि, तक, अचार एवं चटनीका प्रयोग होता था । मगधमें मूंगके मीठे और नमकीन दोनों प्रकारके व्यञ्जन प्रचलित थे ।२ पेय पदार्थोंमें दुग्ध, पानक, जल आदिका उल्लेख मिलता है । तक्रका भी व्यवहार पेयके रूपमें किया जाता था। वेश-भूषामें विभिन्न प्रकारके वस्त्रोंका उपयोग आता है । मगधवासी परिधान-अधोवस्त्र और उत्तरीयका प्रयोग तो करते ही थे, पर अन्य प्रकारके सिले हुए वस्त्र भी व्यवहार में लाये जाते थे। वस्त्रोंमें रेशमी, सूती और ऊनी इन तीनों प्रकारके वस्त्रोंका वर्णन आता है । क्षौम वस्त्र दुधिया रंगका कीमती, मुलायम और सूक्ष्म होता था। धनिक व्यक्ति क्षौमका व्यवहार करते थे। दुकूल वृक्षकी छालके रेशोंसे बनता था। विवाह आदि माङ्गलिक अवसरोंपर क्षौम तथा कौशेयका प्रयोग होता था। दुकूल मृदु स्निग्ध और महार्घ वस्त्र है। धनिक परिवारोंमें यह व्यवहृत होता था। अंशुक वस्त्रके कई भेद हैं-सितांशुक, रक्तांशुक और नीलांशुक आदि । कुसुम्म लाल रंगका रेशमी वस्त्र होता था। सूती लालवस्त्रको भी कुसुम्म कहा जाता था । रत्न कम्बलोंका धनी-मानी प्रयोग करते थे। आभूषणोंमें चूडामणि, किरीट, मुकुट, कुन्तली, हार, रत्नावली, कण्ठमालिका, ग्रेवेयक, १. उवणीयाई चव्वणीयाई दाडिमदक्खादंतसरबोररायणाई । "तयणंतरमुवणीयं चोसं सुस मारिय इक्खु-गंडिया खज्जूर-नारंगी-अंबगाइभेयं । तयणंतरं असोगवट्टि सग्गव्य सेवामोयगसुकुमारिया-घय-सुकुमारिया-घयपुण्णाइयं बहुभेयं भक्खं ।"" ""आयमणं । कथाकोष प्रकरण गा० ८।१० पृ० ५८ २. तिणमयकायमाण संठियजणे । वारिपसिंचमाणचुय जल-कणे । पिसुणलोयहिययं व सकूरउ । सज्जणमणु अ नेहपरिपूरउ । ३. कथाकोषप्रकरण पृ० ५८-५९ तथा जम्बूसामिचरिउ ८।१३ पृ० १६१, पद्मचरित २।३१
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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