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________________ जैन तीर्थ, इतिहास, कला, संस्कृति एवं राजनीति लता होनेके कारण इसका कुसुमपुर नाम बताया गया है । सालिग्रामके मनोरम उद्यानमें सुमन यक्षके चैत्यका वर्णन आता है । यह ग्राम आर्थिक और धार्मिक दृष्टिसे अत्यन्त उन्नत था। कोल्लाक सन्निवेश मगधका प्रसिद्ध ग्राम था। इसमें विउत्त और सुधर्म स्वामीने जन्मग्रहण किया था । शरवण ग्राम मंखलि गोशालका जन्म स्थान था। नालन्दा राजगृहका एक उपनगर था, जहाँपर धनाढ्योंका निवास था । यहाँ श्रमण भगवान् महावीरने वर्षावास किये थे ! तुंगिया नगरी राजगृहके निकटमें अवस्थित थी। भगवती सूत्रसे ज्ञात होता है कि तुंगियाके गृहस्थ धनी, मानी और दृढ़ धर्मी थे । गौतमरासामें बताया गया है कि गणधर इन्द्रभूति, अग्निभूति और वायुभूतिका जन्मस्थान गोबरग्राम था, यह ग्राम मगध देशमें स्थित था। पलास' ग्राम धन-धान्यसे परिपूर्ण थां, प्राचीन समयमें यह ग्राम वैदिक संस्कृतिका केन्द्र था। जम्भिक प्राममें भगवान महावीरने कैबल्य प्राप्त किया था। वर्तमानमें यह जमई ग्राम कहलाता है, जो वर्तमान मुंगेरसे ५० मील दक्षिण एवं राजगृहसे ३५ मीलकी दूरीपर स्थित है । यह स्थान क्विल नदीके किनारेपर है, यह नदो ऋजुकूला या ऋष्यकूलाका अपभ्रंश है । क्विल स्टेशनसे जमुई १८-१९ मीलकी दूरीपर है । जमुई से तीन मील दक्षिण एनमेगढ़ नामक एक प्राचीन टोला है। कनिंघमने इसे इन्द्रद्युम्नपालका माना है । यहाँपर खुदाईमें मिट्टीकी अनेक मुद्राएँ प्राप्त हुई हैं । जमुई और लिच्छवाड़के बीचमें महादेव सिमरिया गांव है। यहाँ सरोवरके मध्य एक ३००-४०० वर्ष प्राचीन मन्दिर है । जमुईसे १५-१६ मीलपर लक्खीसराय है। जमुई और राजगृहके बीच सिकन्दराबाद गाँव है । राजगृह और नालन्दाके बीच अम्बाद्वीपका उल्लेख मिलता है, यह आम्रवन था। आजकल सिलाव ग्राम इसी स्थानपर स्थित है। पर्वत श्रेणियाँ और नदियाँ मगध जनपदमें राजगृहको ऋषिगिरि, वेभारगिरि, विपुलाचल, बलाहक और पाण्डुक ये पञ्च-पहाड़ियाँ प्रसिद्ध हैं । २ गयासे ३८ मीलकी दूरीपर स्थित कुलुआ पहाड़ है । यह पहाड़ जंगलमें है और इसकी चढ़ाई दो मील है। यहाँ सैकड़ों जैन मन्दिरोंके भग्नावशेप पड़े हुए हैं। इस पर्वतपर दसवें तीर्थङ्कर शीतलनाथने तप कर केवलज्ञान प्राप्त किया था। शीतलनाथका जन्मस्थान भद्दिलपुर वर्तमानमें भौंडिल नामसे प्रसिद्ध हुआ है । कुलुआ पहाड़पर वर्तमानमें खण्डित मूर्तियाँ और मन्दिरोंके ध्वंसावशेष उपलब्ध हैं। __ गयाके निकट रफीगंजसे तीन मील पूर्व श्रावक नामका पहाड़ है। यह एक ही शिलाका पर्वत है और दो फर्लाङ्ग ऊँचा है। यहाँ वृक्ष नहीं है, किनारे-किनारे शिलाएँ हैं । पहाड़के नीचे जो गांव बसा है, उनका नाम श्रावकपुर है। पर्वत के ऊपर अस्सी गज जानेपर एक गुफा है, इस गुफामें पार्श्वनाथ स्वामीका मन्दिर है । १. वसुदेवहिरी पृ० २९। २. हरिवंश पुराण ३१५१-५५ । ३. कोटिशिलाके नामसे जैन साहित्यमें इसका उल्लेख आता है । ४. चन्दाबाई अभिनन्दन ग्रन्थ, पृ० १५२ ।
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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