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________________ जैन तीर्थ, इतिहास, कला, संस्कृति एवं राजनीति कनिंघमने लिखा है कि प्राचीन राजगृह पांचों पर्वतोंके मध्यमें विद्यमान था। मनियार मठ नामक छोटा-सा जैन मन्दिर सन् १७८० ई० का बना हुआ था । मनियार मठके पास एक पुराने कुएँको साफ करते समय इन्हें तीन मूर्तियाँ प्राप्त हुई थीं। उनमें एक माया देवीकी मूर्ति थी, दूसरी सप्तफण मंडल युक्त एक नग्न मूर्ति भगवान् पार्श्वनाथ की थी। एम० ए० स्टीन साहब लिखते हैं-"वैभारगिरि पर जो जैन-मन्दिर बने हुए हैं, उनके ऊपरका हिस्सा तो आधुनिक है किन्तु उनकी चौकी जिनपर वे बने हुए हैं, प्राचीन हैं । श्री काशीप्रसाद जायसवालने मनियार मठवाली पाषाण मूर्तिका लेख पढ़कर बताया है कि यह लेख पहली शताब्दीका है और उसमें सम्राट् श्रेणिक तथा विपुलाचलका उल्लेख है। ___ आद्रिस बनर्जीने बताया है कि सातवीं शताब्दी तक वैभारगिरि पर्वतपर जैन स्तूप विद्यमान था और गुप्तकालकी कई जैन मूर्तियाँ भी वहाँ हैं । सोनभद्र गुहामें यद्यपि गुप्त कालीन लेख हैं पर इस गुफाका निर्माण मौर्यकालके जैन राजाओंने किया था । विपुलाचल पर्वतके तीन मन्दिरों में से मध्य वाले मन्दिरमें चन्द्रप्रभु स्वामीकी श्वेतवर्ण की मूर्ति वेदीमें विराजमान है । वेदीके नीचे दोनों ओर हाथी उत्कीणित हैं । बीचमें एक वृक्ष है । बगलमें एक ओर संवत् १५४८ की श्वेतवर्णकी चन्द्रप्रभु स्वामीकी मूत्ति है। यह मूर्ति गुप्तकालीन है । दूसरे रत्नगिरि पर महावीर स्वामीकी श्यामवर्ण प्रतिमा प्राचीन है। तीसरे उदयगिरि पर महावीर स्वामीकी खड्गासन प्रतिमा निःसन्देह गुप्तकालीन है । चौथे स्वर्णगिरि और पांचवें वैभारगिरि पर भी कुछ प्रतिमाएँ गुप्तकालीन है। राजगृह के पर्वतों पर कुछ खण्डित प्रतिमाएं हैं जो प्राचीन हैं । सिद्धभूमि राजगृहके विपुलाचलपर इस युगके अन्तिम तीर्थङ्कर श्री महावीर स्वामीका प्रथम समवसरण लगा था। वीर प्रभुका सम्बन्ध अनेक भवोंसे राजगृहसे रहा है। इस नगरका सांस्कृतिक महत्त्व इसीसे अवगत किया जा सकता है कि यहाँसे अनेक महापुरुषोंने निर्वाण लाभ किया है । श्री पं० नाथूराम प्रेमीने नंग, अनंग आदि साढ़े पांच करोड़ मुनियोंका निर्वाण स्थान यहोंके स्वर्णगिरिको माना है। श्री गौतम स्वामी और श्री जम्बूस्वामीने भी विपुलाचल से ही निर्वाण लाभ किया है । इसके अतिरिक्त केवली धनदत्त, समुन्दर और मेघरथ ने भी यहाँसे निर्वाण पद प्राप्त १. Archaelogical Survey of India Vol 1 (1871) pp-25-26 २. Jonurnal of the Bihar and Orissa Rca. Soe. Volxx11 (June 1935) ३. Indian Historical Quarterly Vol xxv pp-205-210 ४. जैन साहित्य और इतिहास पृ० २०१-२०३ ५. उत्तर पुराण पर्व ७६ श्लोक ५१६ ६. जम्बूस्वामी चरित
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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