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________________ जैन तीर्थ, इतिहास, कला, संस्कृति एवं राजनीति धर्मशालाके मन्दिरके सामने वीर सं० २४७४ में गया निवासी श्रीमान् सेठ केसरीमल लल्लू-लालजीने मानस्तम्भ बनवा कर इसकी प्रतिष्ठा करायी है ! कमलदह गुलजारबाग) यह सेठ सुदर्शनका निर्वाणस्थान माना गया है। सेठ सुदर्शनने इस स्थानपर घोर तपश्चरण किया था। जब सुदर्शन मुनि श्मशानमें ध्यानस्थ थे, आकाशमार्गमें रानी अभयमतीका जीव, जो व्यन्तरी हुआ था, जा रहा था। मुनिके ऊपर ज्यों ही विमान आया कि वह मुनिके योगप्रभावसे आगे नहीं बढ़ पाया। उसने कुअवधिज्ञानसे पूर्व शत्रुताको अवगत कर उन्हें भयानक उपसर्ग दिया; परन्तु धीर-वीर सुदर्शन मुनिराज ध्यानमें सुमेरुकी तरह अटल रहे । देवोंने उनका उपसर्ग दूर किया। सुदर्शन मुनिने योग निरोध कर शुक्लध्यान द्वारा पातिया कोको नष्ट कर केवलज्ञान प्राप्त किया। इन्होंने गुलजारबाग-कमलदह क्षेत्रसे पौष शुदि ५ के दिन अपराह्नमें निर्वाणपद पाया। गुलजारबाग स्टेशनसे उत्तरकी ओर एक धर्मशाला और मन्दिर है। धर्मशालासे थोड़ी ही दूरपर मुनि सुदर्शनका निर्वाण स्थान है । कुण्डलपुर यह भगवान महावीरका जन्मस्थान माना जाता था; पर अब अनेक ऐतिहासिक प्रमाणोंके आधारपर वैशालीका कुण्डग्राम भगवान्की जन्मभूमि सिद्ध हो चुका है। यह स्थान पटना जिलेके अन्तर्गत है और नालन्दा स्टेशन से १-२ मीलकी दूरीपर है। यहाँपर धर्मशालाके भीतर विशाल मन्दिर है । वेदी में मूलनायक प्रतिमा महावीर स्वामी की है, इसकी प्रतिष्ठा माघशुक्ला १३ सोमवार सं० १९८२ में हुई है। तीन प्रतिमाएँ पार्श्वनाथ स्वामी की हैं, जिनकी प्रतिष्ठा वैशाख शुदि ३ सं० १५४८ में हुई है । इस वेदीमें ७ प्रतिमाएँ और एक सिद्ध परमेष्ठीकी आकृति है। स्थान रमणीय और. शान्तिप्रद है । आत्मकल्याण करनेके लिए यह सर्वथा उपयोगी है। अब तो नालन्दामें पाली प्रतिष्ठानके खुल जानेसे इस स्थानकी महत्ता और भी बढ़ गयी है। वैशाली भगवान महावीरका जन्मस्थान यही प्रदेश है ।' वैशाली संघने इस स्थानके अन्वेषणमें अपूर्व श्रम किया है। यहाँसे खुदाईमें भगवान् महावीर स्वामीकी एक प्राचीन मनोज्ञ प्रतिमा प्राप्त हुई है। आजकल यहाँ पर भगवान् महावीरका विशाल मन्दिर बनानेकी योजना चल रही है। मंदिर बनानेके लिए लगभग १३ बीघे जमीन स्थानीय जमींदारोंसे प्राप्त हो चुकी है। यहाँ मंदिर आदिकी व्यवस्थाके लिए 'वैशाली तीर्थ कमेटी' का संगठन हुआ है। १. सिद्धत्थरायपियकारिणीहिं णयरम्म कुण्डले वीरो। उत्तरफग्गुणिरिक्खे चित्तासियातेरसीए उप्पणो ॥ -तिलोयपपणत्ति अ० ४ सिद्धार्थनृपतितनयो भारतवास्ये विदेहकुण्डपुरे । देव्यां प्रियकारिण्यां सुस्वप्नान्संप्रदर्श्य विभुः ।। -निर्वाणभक्तिः श्लो? ४
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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