SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन तीर्थ, इतिहास, कला, संस्कृति एवं राजनीति ६५ किया था। इस स्थानके आस-पासका मोहल्ला अकबरपुर कहलाता है। यह स्थान बहुत प्राचीन है, यहाँ पर अरण्य हैं । मन्दारगिरि भागलपुरसे ३१ मील दक्षिण एक छोटा-सा पहाड़ अनुमानतः ७०० फुट ऊँचा एक ही शिलाका है । यह प्राचीन क्षेत्र है । यहाँसे भगवान् वासुपूज्यने निर्वाण लाभ किया है। उत्तर पुराणमें बताया गया है स तैः सह विहृत्याखिलार्यक्षेत्राणि तर्पयन् । धर्मवृष्ट्या क्रमात्प्राप्य चम्पामब्दसहस्रकम् ।। स्थित्वात्र निष्क्रियो मासं नद्या राजतमौलिकासंज्ञायाश्चित्तहारिण्याः पर्यन्तावनिवत्तिनि ।। अग्रमन्दरशैलस्य सानुस्थानविभूषणे । वने मनोहरोद्याने पल्यंकासनमाश्रितः ।। मासे भाद्रपदे ज्योत्स्ने चतुर्दश्यापराह्नके। विशाखायां ययौ मुक्ति चतुर्नवतिसंयतैः ॥ -उत्तरपुराण पर्व ५८ श्लो० ५०-५३ इससे स्पष्ट है कि वासुपूज्य स्वामी का निर्वाण स्थान यही है; जहाँ आजकल चम्पापुरका मन्दिर स्थित है, वहाँसे भगवान्का निर्वाण नहीं हुआ है । इन श्लोकोंमें बताया गया है कि रजतमौलि नामक नदीके किनारेकी भूमिपर स्थित मन्दारगिरिके शिखरपर स्थित मनोहर नामक उद्यानसे भाद्रपद शुक्ला चतुर्दशीके दिन सन्ध्या समय विशाखा नक्षत्रमें ९४ मुनिराजोंके साथ वासुपूज्य स्वामीने निर्वाणपद प्राप्त किया। भौगोलिक दृष्टिसे पता लगानेपर ज्ञात हुआ कि प्राचीन रजतमौलि नदी आजकल भी रजत नामसे प्रसिद्ध है । भाषा विज्ञानकी अपेक्षासे रजतमौलिका रजत नाम सहज सम्भव है। अतएव वासुपूज्य स्वामी का यही मन्दारगिरि निर्वाण स्थान है ।' पहाड़के ऊपर दो बहुत प्राचीन जिनालय हैं, इनकी स्थापत्य कला ही इस बातकी साक्षी है कि ये मन्दिर आजसे कमसे कम १० हजार वर्ष प्राचीन हैं । बड़े मन्दिरकी दीवालकी चौड़ाई ७ फीट है, जो बौद्ध कालकी स्थापत्यकलाका सूचक है । पहाड़के बड़े मन्दिर में वासुपूज्य स्वामीके श्यामवर्णके चरणचिह्न हैं। ये चरण भी बहुत प्राचीन हैं, पाषाण एवं शिल्पकी दृष्टिसे ई० सन् की ८-९वीं शतीके अवश्य हैं । पहाड़परके छोटे मन्दिरमें तीन चरणपादुकाएँ हैं । ये पादुकाएं भी प्राचीन हैं तथा निर्वाण प्राप्त मुनिराजोंकी मानी जाती हैं । बड़े मन्दिरके १. निर्वाणकाण्ड और तिलोयपण्णत्तिमें यद्यपि वासुपूज्य स्वामीका निर्वाण चम्पापुरी माना गया है; पर इसमें कोई विरोध नहीं है। क्योंकि जैनागममें चम्पापुरीका विस्तार ९६ मील लम्बा और ३६ मील चौड़ा बताया गया है । अतः मन्दारगिरि इसी चम्पाके अन्तर्गत है। तिलोयपण्णत्ति और निर्वाणकाण्डमें सामान्यापेक्षया कथन है, इसलिए चम्पा लिखा है, परन्तु उत्तरपुराणमें विशेष रूपसे स्थानका निर्देश किया गया है। अतः वासुपूज्य स्वामीका निर्वाणस्थान मन्दारगिरि है।
SR No.032458
Book TitleBharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy