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________________ 56 प्राकृत भाषा प्रबोधिनी अम्हाण इमं कत्तव्वं अत्थि जओ अम्हे गुरूण, पिअरस्स, जणणीए एवं जम्मभूमीए आयरं सेवं य कुणमो। इमे अम्हाण पुज्जणीआ सन्ति। 2. अपठित हिन्दी अंशों का प्राकृत में भाषान्तर (अ) राजा भीम ने दमयन्ती के स्वयंवर की घोषणा की तथा सभी देशों के राजकुमारों को आमंत्रित किया। दमयन्ती की सुन्दरता को सुनकर प्रधान देवों ने भी उससे विवाह करना चाहा और उन लोगों ने भी स्वयंवर में भाग लिया। उन लोगों ने दमयन्ती के पास अपनी अभिलाषा को कहने के लिए एक दूत को भी भेजा। वे समझ गये कि दमयन्ती का हृदय नल पर अनुरक्त हो गया है और इसलिए ये चार देवता ठीक नल के रूप में स्वयंवर में प्रकट हुए। दमयन्ती पांच नलों को देखकर किंकर्तव्यविमूढ़ हो गई और वास्तविक नल को नहीं चुन सकी। उसने देवों से प्रार्थना की,-"मैंने नल के गुणों को सुना है तथा मैंने उन्हें अपने पति के रूप में वरण किया है। सत्य के लिए,, देवता लोग अपने स्वरूप को ग्रहण कर लें और मेरे लिए उन्हें प्रत्यक्ष करें।" उसकी दृढ़ धारणा देखकर उन्होंने अपने स्वरूप को ग्रहण कर लिया। तब दमयन्ती ने नल के गले में माला डाल दी। देवताओं ने प्रसन्न होकर वर-वधू को अनेक वरदान दिये। (ब) एक किसान के पास एक मुर्गी थी, जो प्रतिदिन सोने का एक अण्डा दिया करती थी। वह लालची मनुष्य इससे सन्तुष्ट नहीं था। एक दिन उसने सोचा, “यह मुर्गी मुझे प्रतिदिन एक ही अण्डा देती है। इसके पेट में सोने के ऐसे बहुत से अण्डे होंगे। यदि मैं सबको एक ही समय पाऊँ तो मैं धनी हो सकता हूँ। अतएव उसने मुर्गी को मारकर उसके पेट को छुरी से काट दिया। लेकिन उसके पेट में एक अण्डा भी नहीं मिला। इस प्रकार जो वह सोने का अण्डा प्रतिदिन पाता था, उससे भी वंचित हो गया। साथ ही वह मुर्गी भी समाप्त हो गई। किसान ने अपनी मूर्खता पर खेद प्रकट किया और पश्चाताप में डूब गया। वस्तुतः असन्तोष और लालच सब दुःखों की जड़ है। (स) भारत ऋतु-प्रधान देश है। विश्व-भर में हमार देश ही ऐसा देश है, जहां वसन्त, ग्रीष्म, वर्षा शरत्, हेमन्त और शिशिर ऋतुएं प्रकृति के प्रांगण में अपना-अपना अभिनय दिखाती है। इन सब में श्रेष्ठ, मादक और हृदयग्राही अभिनय वसन्त का है। इसीलिए इसे ऋतुराज की उपाधि से विभूषित किया गया है। परिवर्तन सृष्टि का शाश्वत नियम है। प्रकृति भी इस नियम से बंधी चलती है। उसका रूप कभी कठोर होता है तो कभी कोमल। ऊषा, संध्या, सस्यश्यामला भूमि, पुष्पित लता-पादप आदि में उसके कोमल रूप के दर्शन होते हैं। वसन्त ऋतु ही एक ऐसी ऋतु है, जिसमें प्रकृति नव्य-भव्य और कोमल रूप में अपनी मादक छटा दिखाती है। वसन्त
SR No.032454
Book TitlePrakrit Bhasha Prabodhini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangitpragnashreeji Samni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages88
LanguageHindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
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