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________________ प्राकृत भाषा प्रबोधिनी समास - दो या दो से अधिक शब्दों के संयोग को समास कहते हैं । संज्ञा - स्वर, व्यंजन, लघु, गुरु आदि को संज्ञा कहते हैं । 'लोकात् ' की अनुवृत्ति का यहां ग्रहण हुआ है । इसलिए ऋ, ऋ, लृ, लृ, ऐ औ, ङ, ञ, श, ष, विसर्ग और प्लुत (तीन मात्रा वाला) को छोड़कर शेष वर्ण - समुदाय को लोक व्यवहार से जानना चाहिए । 17 प्राकृत में स्वतंत्र रूप से ङ और ञ का अस्तित्त्व नहीं है, किन्तु ङ और ञ अपने वर्ग के व्यंजनों के साथ होते हैं, जैसे- गङ्गा, पञ्च । कहीं-कहीं व्याकरणों में ऐ और और भी मिलते हैं। जैसे- कैअवं, सौअरिअं । प्राकृत में स्वररहित व्यंजन नहीं होता है । द्विवचन और चतुर्थी विभक्ति भी नहीं होती । द्विवचन का प्रयोग बहुवचन के रूप में तथा चतुर्थी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग होता है । तादर्थ्य ( उसके लिए) एकवचन में प्रायः चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग प्राप्त होता है । 2. बहुलम् 1/2 शास्त्र परिसमाप्ति तक ‘बहुलं' सूत्र का अधिकार जानना चाहिए; बहुल का अर्थ हैकहीं सूत्र की प्रवृत्ति होती है, कहीं पर सूत्र की प्रवृत्ति नहीं होती है, कहीं पर विकल्प से होती है तो कहीं पर कुछ अन्य ही हो जाता है । 3. आर्षम् 1/3 ऋषियों की वाणी को आर्ष कहते हैं । आर्ष प्राकृत भी बहुलता युक्त होती है । वर्ण प्रत्येक पूर्ण ध्वनि को वर्ण कहते हैं, जैसे-अ, आ, क, ख .... । संस्कृत में कुल 47 वर्ण हैं । उनमें 14 स्वर और 33 व्यंजन हैं। वर्ण के दो भेद हैं2. व्यंजन । 1. स्वर, स्वर अन्य वर्ण की सहायता के बिना जिसका उच्चारण हो सके, उसे स्वर कहते हैं । स्वर निम्न होते हैं-अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ऋ, लृ, लृ, ए, ऐ, ओ, औ । प्राकृत में निम्न आठ स्वर ही होते हैं अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ओ । उपर्युक्त स्वरों को दो भागों में विभक्त किया गया है1. ह्रस्व स्वर-अ, इ, उ, ए, ओ 1
SR No.032454
Book TitlePrakrit Bhasha Prabodhini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangitpragnashreeji Samni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages88
LanguageHindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
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