SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मनुष्य विश्व का एक उपांग है, अतः उसके कर्मों की प्रतिक्रिया जगत पर होती है, जिसके कारण व्यवस्था या अव्यवस्था उत्पन्न होती है । प्रकृति के विविध आयाम (Approaches) : __ प्रकृति के अंतर्गत नियम का मनुष्य अनुसरण करना चाहता है । प्रकृति को अचेतन कहकर बिठाया (dubbed) नहीं जा सकता । भारतीय तत्त्वज्ञान में उसे ब्रह्म कहा गया है, जो बृहद् है और विकसित होता है । सर्वेश्वखादी स्पिनोझा, लाईब्नीझ, बेडले वगैरह ने यह भूमिका अपनायी थी । प्रकृति की ओर वैज्ञानिक दृष्टि बहुत ही महत्त्व की है, लेकिन वह बोधात्मक (Cognitive), व्यावहारिक (Empirical), विश्वलेषणात्मक (Analytical) और वैचारिक (Conceptual) है । यह तर्क ग्राह्य दृष्टि है लेकिन यही सब कुछ नहीं है । प्रकृति को नैतिक, धार्मिक, कलात्मक और रहस्यात्मक दृष्टि से भी देखना चाहिए । वैज्ञानिक दृष्टि जैसे ही ये दृष्टिकोण महत्त्व के हैं, क्योंकि ये मूल्यात्मक दृष्टिकोण हैं । प्रकृति कर्म-सिद्धांत के आधार पर : प्रकृति कर्म-सिद्धांत के आधार पर काम करती है और कर्मसिद्धांत का मुख्य ध्येय है समत्व बनाये रखना/आदि मानवप्रकृति का उपयोग समत्व रखकर ही करता था । लेकिन न्यूटन के जमाने से मनुष्य ने प्रकृति को मशीन के रूप में देखा तब से समस्या का आरंभ हुआ । मनुष्य और प्रकृति का सम्बन्ध सहअस्तित्व का था, लेकिन शहरी सभ्यता के उपभोक्तावाद और आबादी उत्तरोत्तर बढ़ने से सहअस्तित्व में विसंवादिता उत्पन्न हुई है । वातावरण प्रदूषित हुआ है और उसका असर भौतिक, शारीरिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और वैश्विक पहलुओं पर भी पड़ता है । विनोबाजी कहते है - "मेरे कर्म का फल मुझे अवश्य मिलेगा, अभी नहीं तो दूसरे जन्म में ।" किन्तु मेरे कर्म का फल मुझे ही मिलेगा, आपको नहीं और आपके कर्म का फल आपको ही मिलेगा, मुझे नहीं, ऐसा नहीं है । कुछ कर्म मिले-जुले होते है, तो कुछ व्यक्तिगत । घर के किसी एक व्यक्ति ने गलत काम किया तो उसका परिणाम सारे परिवार को भोगना पड़ता है । ज्ञानधारा-3 मा ११३ मन साहित्य SIHARI-3)
SR No.032451
Book TitleGyandhara 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunvant Barvalia
PublisherSaurashtra Kesari Pranguru Jain Philosophical and Literary Research Centre
Publication Year2007
Total Pages214
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy