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________________ २८६ ८१ ८२ ८३ ८४ ८५ ८६ ८७ ८८ ८९ ९० का , 11 21 31 " 77 13 जघन्य अनुभाग अनन्तगुण उससे ७२ -७३ 31 " 37 11 13 " " " 17 11 " " " 17 " " 11 11 13 ܙܪ 11 "3 " : 17 " 11 11 11 -७४ अवशिष्ट कण्डक प्रमाण स्थिति -७५ - ७६ -७७ .७८ -७९ -८० १८१ * * का 11 " 31 31 11 33 "1 11 " ८२ ८३ ८४ ८५ ८६ ८७ ८८ 11 ८९ 31 11 11 11 उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुण 11 " " 37 " " 17 "1 " " 17 17 11 "1 11 " J ९० स्पष्टीकरण गाथा ६७ के अनुसार. " " " " 21 " " 31 " "" " " 11 11 17 " 13 "" " " 11 17 " " 11 "1 " " " "" " 13 "" " कमंप्रकृति उससे " 31 17 " 27 " 11 " " " " " 11 १. सप्तम नरक में वर्तमान नारक के सर्वजघन्य स्थितिस्थान के जपन्यपद में अनुभाग सर्वस्तोक है। जिसे प्रारूप में ११ के अंक से बतलाया है। २. द्वितीयादि निवर्तनकण्डक तक के स्थान में जघन्य अनुभाग क्रमशः अनन्तगुण जानना चाहिये जिसे प्रारूप में १२ से २० के अंक पर्यन्त बताया है। ३. उसके बाद जघन्य स्थिति के उत्कृष्ट पद में उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुण है, जिसे प्रारूप में २० के अंक के सामने के ११ के अंक से बतलाया है । ४. इससे निवर्तनकण्डक से ऊपर के प्रथम स्थितिस्थान में उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुण है । जिसे १२ के अंक से बताया है। द्वितीय स्थिति के उत्कृष्ट पद में अनुभाग अनन्तगुण है, जिसे २१ के अंक के सामने १२ के अंक से बतलाया है। इस प्रकार एक जघन्य, एक उत्कृष्ट अनुभाग तब तक जानना चाहिये जब तक कि अभव्य प्रायोग्य जयन्य अनुभाग के नीचे की चरम स्थिति आती है। जिसे प्रारूप में २२-१३ २३-१४, २४-१५ आदि म लेते हुए अंत में ३९-३० के अंक से बताया है। ५. अभव्यप्रायोग्य जघन्य अनुभाग की चरम स्थिति ४० के अंक से बताई है । ६. अभव्यप्रायोग्य जपन्य अनुभागबंध विषयक प्रथम स्थिति में जघन्य अनुभाग अनन्तगुण है। द्वितीयादि स्थितियों (सागरोपमणतपुयक्त्व प्रमाण स्थितियों) पर्यन्त तावन्मात्र तावन्मात्र अर्थात अनन्तगुण है। जिसे प्रारूप में ४१ से ६० अंक पर्यन्त बतलाया है । इन स्थितियों को परावर्तमान जघन्य अनुभागबंधप्रायोग्य भी कहते हैं ।
SR No.032437
Book TitleKarm Prakruti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year1982
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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