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________________ परिशिष्ट २७५ उत्कृष्ट ४९, जघन्य ३८, उत्कृष्ट ४८, जघन्य ३७, उत्कृष्ट ४७, इस प्रमाण से अनुभाग का दिग्दर्शन कराते हुए उत्कृष्ट स्थिति का जघन्य अनुभाग २१ के अंक पर्यन्त जानना और उत्कृष्ट स्थिति का उत्कृष्ट अनुभाग ३१ के अंक पर्यन्त जानना । १२. इसके पश्चात् उत्कृष्ट स्थिति का उत्कृष्ट अनुभाग कण्डक प्रमाण अनन्तगुण कहना, जिन्हें ३० से २१ तक के अंक द्वारा बतलाया है । परावर्तमान २८ अशुभ प्रकृतियों की तीव्रता - मंदता ( असातावेदनीय, नरकगतिद्विक, पंचेन्द्रियजाति हीन जातिचतुष्क, आदि के संस्थान और संहनन रहित शेष पांच संस्थान और संहनन, अशुभविहायोगति, स्थावरदशक २८ ) = परावर्तमान अशुभ प्रकृतियों की तीव्रता-मंदता का विचार अनुकृष्टि की तरह जघन्यस्थिति से प्रारम्भ कर उत्कृष्टस्थिति पर्यन्त किया जाता है । परावर्तमान अशुभ प्रकृतियों की तीव्रता- मंदता दर्शक प्रारूप इस प्रकार है उससे सागरोपम शतपृथक्त्व प्रमाण स्थितियां २१ का जघन्य अनुभाग अल्प २२ २३ २४ २५ २६ २७ २८ २९ ३० ३१ ३२ ३३ ३४ ३५ ३६ ३७ ३८ 8 x x x x x x x I x x www ३९ ४० ४१ ४२ ४३ ૪૪ ४५ ४६ ४७ ४८ ४९ ५० 31 "1 " " " 17 " "1 11 " "1 " 11 " " " "" " "1 " 23 17 " 11 13 " "1 "1 "1 17 "" " 31 "" " "" " " "" 33 "" "" " " " 11 31 37 " " " " ' " 12 11 77 " "1 11 " 33 " "" "" 19 "" 17 " " 33 " "" 17 "" " 11 17 11 7 " 21 11 " "? 29 " "" "" "1 "1 13 "" " 23 37 "1 11
SR No.032437
Book TitleKarm Prakruti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year1982
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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