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________________ कर्मप्रकृति ५. उसके नीचे द्वितीय स्थिति में उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुण है। जिसे प्रारूप में अंक १३ के सामने १० का अंक देकर बताया है । ६. इसके बाद तृतीय स्थिति में जघन्य अनुभाग अनन्तगुण है। जिसे प्रारूप में १४ के अंक से बताया है। ७. इस प्रकार एक ऊपर और एक नीचे यथाक्रम से अनन्तगुणत्व तब तक कहना चाहिये, जब तक उत्कृष्ट स्थिति का जघन्य अनुभाग प्राप्त होता है। जिसे प्रारूप में १४ - ११, १५ - १२, १६-१३, १७-१४ आदि लेते हुए उत्कृष्ट स्थिति का जघन्य अनुभाग २० के अंक तक बताया है। २७० ८. शेष कण्डक मात्र उत्कृष्ट स्थिति का जो अनुभाग अनुक्त है, वह सर्वोत्कृष्ट स्थिति के जघन्य अनुभाग से कण्डक मात्र स्थितियों की प्रथम स्थिति का जधन्य अनुभाग अनन्तगुण है, फिर उसकी उपरितन स्थितियों में उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुण है । पुनः उसके बाद की उपरितन स्थिति में उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुण है । इस प्रकार उत्कृष्ट अनुभाग का अनन्तगुणत्व उत्कृष्ट स्थिति पर्यन्त कहना चाहिये । जिसे प्रारूप में कण्डक प्रमाण [ १७-२०] चार स्थितियां लेकर बताया है। इनमें प्रथम स्थिति १७ के अंक से है। तत्पश्चात् १८, १९, २० के अंक तक अनन्तगुणत्व जानना चाहिये । ९. २० का अंक उत्कृष्ट स्थिति व उत्कृष्ट अनुभाग का सूचक है। १०. इस प्रकार की रेखा परस्पर आक्रान्त प्ररूपणादर्शक है। जिसका आशय यह है कि १२ के अंक के जघन्य अनुभाग से अंक ९ का उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुण, ९ के अंक के उत्कृष्ट अनुभाग से १३ के अंक का जन्य अनुभाग अनन्तगुण, १३ के अंक के जघन्य अनुभाग से ११ के अंक का उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगण है। इसी प्रकार के क्रम से जघन्य, उत्कृष्ट अनुभाग की अनन्तगुणता परस्पर आक्रान्त प्ररूपणा से करना चाहियें। अपरावर्तमान ४६ शुभ प्रकृतियों की तीव्रता - मंदता निवर्तन कंडक अभययोग्य स्थिति (पराधात, उद्योत, आतप, शुभवर्णादि ११, अगुरुलघु, निर्माण, तीर्थंकर, उच्छ्वास, बंधननाम १५, शरीरनाम ५ संघातनाम ५, अंगोपांगनाम ३ = ४६ ) उक्त प्रकृतियों की तीव्रता-संदता का दर्शक प्रारूप इस प्रकार है उससे २० १९ १८ १७ १६ १५ ?* १३ १२ ११ १० २ का जघन्य अनुभाग अल्प. अनन्तगुण 21 11 " "1 "1 222222 "" "" 11 "" 11 " " 17 " "1 37 "1 "1 "1 "" 21 11 31 23 " 31 " "1 11 22 " "1 " -२० - १९ . १८ - १७ - १६ -१५ - १४ - १३ -१२ ११ १० ८ २ १ का " 17 " 27 33 "" 11 " उत्कृष्ट 37 " 23 "" " 37 " "1 17 अनु " 31 11 "1 "1 " 17 " अनन्तगुण " " "1 "" " " " 11 13 उससे " " " "1 " 11 21
SR No.032437
Book TitleKarm Prakruti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year1982
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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