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________________ परिशिष्ट अपेक्षा उनका काल सर्वाधिक है, तत्पश्चात् दोनों ओर घटता हुआ है । ये अष्टसामयिकस्थान अनन्तगुणवृद्धि और अनन्तगुणहानि दोनों में वर्तमान हैं। क्योंकि पूर्व सप्तसमय वाले अन्तिम स्थान की अपेक्षा अष्टसमय वाले का प्रथम स्थान अनन्तगुणवृद्धि वाला होने से उसकी अपेक्षा बाकी के अष्टसामयिक सर्वस्थान अनन्तगुणवृद्धि वाले हैं तथा अष्टसामयिक के अन्तिम स्थान की अपेक्षा पर सप्तसामयिक प्रथम स्थान अनन्तगुणवृद्धि ( हानि ) वाला होने से उस सप्तसामयिक प्रथम स्थान की अपेक्षा अष्टसामयिक सर्वस्थान अनन्तगुणहीन होते हैं । इस प्रकार आदि के पांच, छह और सात सामयिक स्थान और अंत के सात, छह, पांच, चार, तीन सामयिक स्थान अनन्तगुणवृद्धि और अनन्तगुणहानि वाले हैं तथा आदि के चारसामयिक स्थान अनन्तगुणवृद्धि में और सर्वान्तिम दोसामयिक स्थान अनन्तगुणहानि में होते हैं । सुगमता से समझने के लिये इस यवमध्यप्ररूपणा के यव की स्थापना इस प्रकार चतुःसामयिक पंच ष्ट् सप्त 31 "" "1 अष्ट ". सप्त षट् पंच " चतु " " 11 १० ११ इस स्थापना में जो - इस प्रकार की पंक्ति है, उसको अनुक्रम से अनुभागस्थान तथा जो ११ भाग हैं, उसमें सबसे पहला चतुःसमयात्मक स्थान है । तदनुसार अनुक्रम से पंचसामयिकादि स्थान जानना चाहिये । इन अनुभागस्थानों का समयापेक्षा यव जैसा और स्थान की अपेक्षा. डमरुक जैसा आकार होता है । जिसका आकार पृष्ठ २४१ पर देखिये । १२. ओजोयुग्मप्ररूपणा- जिस संख्या को ४ से भाग देने पर एक शेष रहे वह कल्योज, दो शेष रहे वह द्वापरयुग्म, तीन- शेष रहे वह तोज और कुछ शेष न रहे वह कृतयुग्म कहलाता है । अनुभागस्थान के अविभाग, स्थान और कंडक कृत युग्मराशि में होते हैं ।
SR No.032437
Book TitleKarm Prakruti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year1982
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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